________________
बीकानेर के व्याख्यान ]
[१४५
संसार पर भी दृष्टि देना आवश्यक है। संसार पर दृष्टि दिये विना आत्मिक कल्याण नज़र नहीं आता। आज संसार में एक मनोभावना सर्वत्र दिखाई देती है और वह यह है कि लोम फल तो चाहते हैं लेकिन क्रिया करना नहीं चाहते। पंगु को दया से प्रेरित होकर अगर कोई फल दे भी दे तो भी रहेगा वह पंगु ही। अंधे का सहाग लेकर फल तोड़ लेने में पंगु को जो आनन्द मिल सकता है वह आनन्द दूसरे के फल देने से नहीं मिल सकता । जिस दिन उसे दूसरा फल नहीं देगा उसी दिन वह दुःख फिर पंगु के सामने आ खड़ा होगा।
आप लोग पगड़ी बाँधते हैं और धोती पहनते हैं। इस क्रिया का फल आप यही समझते हैं कि आप संसार-व्यवहार में अच्छे दिखलाई दें। ठीक दीखने के लिए आप जो धोती
और पगड़ी पहनते हैं, उसे अगर अपने हाथ से पहन सकें तब तो ठीक है: कदाचित् दूसरे के हाथ से पहना करें तो क्या ठीक होगा? आज आपको सभी प्रकार की सुविधा प्राप्त है तो दूसरे के हाथ से आप पोशाक पहन सकते हैं। कल अगर ऐसी सुविधा नहीं हुई तो क्या होगा? क्या उस समय आपमें दीमता की भावना जागृत नहीं होमी ? प्राप विषाद में नहीं डूब जाएँगे?
इस बात पर गहराई के साथ विचार करने पर श्रापको मालूम होगा कि खतंत्रता का मूल्य क्या है ? अगर आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com