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बीकानेर के व्याख्यान ]
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सेठ ने मुनीम की सलाह नहीं मानी और इस कारण उसका काम कच्चा रह गया। सेठ ने कुछ दिनों तक तो अपना प्राडम्बर कायम रक्खा मगर पूंजी के विना कोरा अाडम्बर कब तक चल सकता था ? जब न चल सका नो एक दिन सेठ ने बड़े दुःख के साथ मुनीम से अपने लिए दूसरी पाजीविका खोज लेने को कह दिया । उसने लाचारी दिखलाते हुए अपनी स्थिति का भी हाल बतला दिया, यद्यपि मुनीम से कोई बात छिपी हुई नहीं थी।
मुनीम ने कहा-अपना संसार-व्यवहार चलाने के लिए मुझे कोई धन्धा तो करना ही पड़ेगा, लेकिन आप यह न •समझे कि मैं पराया हूँ। जब कभी मेरे योग्य काम आ पड़े
श्राप निस्संकोच होकर मुझे आज्ञा दें। अधिक तो क्या, मैं प्राण देने के लिए भी तैयार हूँ।
इस प्रकार बड़े दुःख के साथ सेठ ने मुनीम को विदा किया और मुनीम भी बड़े दुःख के साथ विदा हुआ।
मुनीमजी घर बैठे रहे। नगर में बात फैल गई कि अमुक मुनीमजी आजकल खाली हैं। उसी नगर में एक वृद्ध सेठ रहता था। वह खूब धनवान् था। उसके बच्चे छोटे थे । वह चाहता था कि मैं व्यापार और बालकों का भार किसी विश्वस्त आदमी को सौंपकर कुछ धर्म-कर्म करने में लगें। मगर उसे अपने नौकरों में ऐसा कोई नहीं दिखता था जो उसका कामकाज संभालकर ईमानदारी से काम कर सके। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com