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[ जवाहर-किरणावली
गंभीरता में नहीं उतरती।
सच्चा श्रावक कभी नहीं सोचेगा कि मैं गुलामी का कार्य करता हूँ। वह तो यही समझेगा कि मैं जो कुछ करता हूँ, अपने धर्म की साक्षी से करता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि मेरे किसी कार्य से मेरे व्रत में दोष लग जाय और मेरे व्यवहार से मेरे धर्म की प्रतिष्ठा में कमी हो जाय । मैं नौकर हूँ, लेकिन सत्य का । शास्त्र की कथाओं में उल्लेख है कि ऐसा समझने वालों को अनेक प्रलोभन दिये गये, यहाँ तक कि प्राण जाने का भी अवसर आ पहुँचा, फिर भी वे अपने सत्य धर्म से विचलित नहीं हुए।
मतलब यह है कि चाहे कोई मुनीमी करे या मजदूरी करे, अगर वह सच्चा श्रावक है तो यही विचारेगा कि मैं पैसे के लिए ही नौकरी नहीं करता हूँ। मुझे अपने धर्म का भी पालन करना है। जो ऐसा विचार करके प्रामाणिकता के साथ व्यवहार करेगा वही सच्चा श्रावक होगा। जो पैसे का ही गुलाम है वह धर्म का पालन नहीं कर सकता। सच्चा श्रावक अपने मालिक के बताये हुए भी अन्यायपूर्ण काम को करना स्वीकार नहीं करेगा।
पूज्यश्री श्रीलालजी महाराज एक बात कहा करते थे । वह इस प्रकार है:
किसी सेठ के यहाँ एक प्रामाणिक मुनीम था। अपने सेठ का काम ,वह धर्मनिष्ठा के साथ किया करता था। एक बार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com