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बीकानेर के ग्याल्यान]
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साथ संयम पालने वाले और विना मन लोकदिखावे के लिए संयम पलने वाले साधु में है। जो भावना के साथ संयम पालता है वह मालिक के समान है और जो दिखावे के लिए संयम का पालन करता है वह गुलाम के समान है।
आप लोग श्रावक हैं। आप केवल मुनिपन की दृष्टि से प्रमाथ हैं, श्रावकपन की दृष्टि से सनाथ हैं । इस दृष्टि से आप आप इन्द्र से भी बड़े हैं । इन्द्र श्रावकपन की दृष्टि से भी अनाथ है। अतएव अाप अपने गौरव को समझें । अपने पद की उञ्चता को समझ कर उसका पूरी तरह निर्वाह करें । अतीन काल में भगवान् के शासन में अनेक श्रावक हो चुके हैं। आपका पद उन्हीं की कोटि का है। आप उनके उत्तराधिकारी हैं । ऐसा कोई काम न करें जिससे आपकी और आपके द्वारा उनकी भी कीर्ति में धब्बा लगने की संभावना हो। इसके अतिरिक्त आप जो कुछ भी करें, दीनता और पराधीनता स्याग कर करें। आपको यह समझना उचित है कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वह अपना काम कर रहा हूँ। मैं गुलामी का काम नहीं कर रहा हूँ। __ कल्पना कीजिए, दो गुमाश्ता हैं । उनमें एक श्रावक है और दूसरा अश्रावक है। इन दोनों के कार्य में कुछ अन्तर तो होना ही चाहिए । अगर कुछ भी अन्तर नहीं है तो दोनों के धर्म का अन्तर सर्वसाधारण की समझ में कैसे पाएगा? साधारण जनता तो धर्म के अनुयायी व्यक्तियों के आचरण से
ही उनके धर्म की परीक्षा करती है। वह तात्विक विवेचना की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com