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________________ १२८] , [जवाहर-किरणाक्ली उसके हृदय में उत्साह होता है। जब उत्साह के कारण संसार-व्यवहार के कठिन कार्यों में दुःख का अनुभव नहीं होता तब जन्म-जन्मान्तर के कष्ट मिटाने वाले संयम को पालने में क्यों कष्ट मालूम होगा? लेकिन जिन्होंने कपटपूर्ण संयम लिया है, उन्हें बोलने, चलने, खाने, पीने आदि में पद-पद पर खेद मालूम होता है। भगवान् ने कहा है कि जिस साधु के संकल्प-विकल्प न मिटे उसे साधुपन में पद-पद पर कष्ट होते हैं। इसलिए साधु में संकल्प-विकल्प रहना अनाथता के लक्षण हैं। सारांश यह है कि अन्तरात्मा में पूरी सद्भावना स्थापित करके साधुपन पालने वाला ही सनाथ बनता है। ऊपरऊपर के भाव से काम करने वाला सनाथ नहीं, अनाथ ही है। . दुकान में मुनीम भी काम करता है और सेठ का लड़का भी काम करता है। मुनीम तनख्वाह लेता है. और सेठ का लड़का कुछ भी नहीं लेता। लेकिन पैसे के लिए काम करने वाले में और घर का काम समझ कर करने वाले में कितना अन्तर होता है ? . जो अपना कार्य समझ कर कार्य करता है वह.मालिक बन कर करता है, गुलाम बन कर नहीं। मालिका औरगुलाम भोजि अन्तर है वही प्रान्तरिक उतार और समाज के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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