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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ १२७ और अच्छे से अच्छे कार्य का भी उत्तम फल वह प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसी प्रकार जो व्यक्ति साधुपन पर श्रद्धा नहीं रखता है लेकिन ऊपर से साधु बना हुआ है, उसके लिए वह संयम भी दुःखदायी हो जाता है । जो व्यक्ति श्रद्धा और उत्साह के साथ संयम का पालन करता है, उसे संयम के कष्ट का अनुभव ही नहीं होता । वह कष्टों का भी आनन्द के रूप में पलट लेता है । यह इतनी सरल और सीधी बात है कि प्रत्येक आदमी अपने ही अनुभव से इसे समझ सकता है । संसार-व्यवहार की बातों को ही लीजिए। आपको कहीं हजार रुपये मिलने की आशा होगी तो आप उसी समय दौड़े जाएँगे। उस समय आपको इतनी स्फूर्ति और इतना उत्साह मालूम होगा कि सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास आदि का कष्ट मालूम ही नहीं पड़ेगा । यों किसी का मुँह काला कर दिया जाय या धूल फेंकी जाय तो वह आग बबूला हो जायगा । लेकिन फागुन के महीने में ऐसा उन्माद छा जाता है कि काला मुँह करने पर पर और धूल फेंकने पर आनन्द माना जाता है । जब फागुन के महीने में मिथ्या उन्माद के कारण ऐसा करने पर भी दुःख नहीं होता तो जिसे ज्ञान का उन्माद हो गया है उसे क्यों दुःख होगा ? और पुत्री के विवाह में माता रात दिन एक कर भी उसका मन आनन्द ही पाता है; क्योंकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com पुत्र देती है,
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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