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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ ११६ ---- - - - -- ---- -..- -.----. . .. . -. कहना ही नहीं है, लेकिन आज्ञा-बाहर के काम जैसे ही तुम्हारे सामने आवे वैसे ही तुम परमात्मा की शरण में जाओ। वैरी के सामने आते ही शस्त्र छोड़ देना कायरता है। काम क्रोध आदि ही तुम्हारे असली वैरी हैं । यह जब तुम्हारे पास आवे तब तुम परमात्मा से प्रार्थना करो-'प्रभो! इनसे हमें बचा। ऐसा करने से वे वैरी तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। मगर कठिनाई यह है कि ऐसे विकट प्रसंग पर लोग परमात्मा को भूल जाते हैं और इसी कारण परमात्मा उनकी रक्षा नहीं कर सकता। शत्रु का हमला कभी न कभी होता ही है। हरला न हो तो परीक्षा कैसे हो? मगर हमला होने पर जो परमात्मा की शरण जाता है उसे क्षण-क्षण में सहायता मिले वेना नहीं रहती । जो मन और वाणी के भी अगोचर है, जिसकी शक्ति के सामने तलवार, आग, ज़हर और देवताओं की शक्ति भी तुच्छ है, उस महाशक्ति के सामने सारा संसार तुच्छ है। जो ले उसको रूठन दे, पर तू मत रूठे मन बेटा । एक नारायण नहीं रूठे तो सब के काट लू चोटी-पटा।।* इस उक्ति का अर्थ पलट दिया जाय तो बात दूसरी है। नहीं तो यह समझ लो कि जो रूठता है उसे रूठने दो, लेकिन तू मत रूठ । जिस मशक ने वायु को अपने भीतर भलीभाँति भर लिया है, उस मशक को कोई भी तूफ़ान नहीं डुबा *इसकी व्याख्या इसी पुस्तक में अन्यत्र पा चुकी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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