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________________ १२०] [जवाहर-किरणावली सकता। इसी प्रकार हे आत्मा ! काम क्रोध आदि का कैसा ही तूफान श्रावे तू ईश्वर की शरण मत छोड़। मित्रो ! आत्मा को अमृतमयी बनाओ। यह मत समझो कि माला हाथ में ले लेने से ईश्वर का भजन हो जायगा। ई वर को अपने हृदय में विराजमान करो। जब तक शरीर में प्राण हैं तब तक जैसे निरन्तर श्वास चलता रहता है, उसी प्रकार परमात्मा का ध्यान भी चलता रहना चाहिए । ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपथ्य और तामसिक भोजन तथा खोटी संगति को त्यागकर शुद्ध अन्तःकरण से उसका भजन करोगे तो उसे प्राप्त करने की सिद्धि भी अवश्य मिलेगी। बाइयो! यह समय अपूर्व है । जो अवसर मिला है वह बार-बार नहीं मिलेगा और प्रतिक्षण चला जा रहा है। इसे परमात्मा के ध्यान में लगाओ। परमात्मा के ध्यान से तुम्हें सन्मति प्राप्त होगी । तुम्हारे कुकर्म छूट जाएँगे और तुम्हारे लौकिक-व्यवहार में कोई बाधा नहीं आवेगी। कुछ लोग कहा करते हैं कि परमात्मा का भजन करने पर भी हमारा अमुक काम सिद्ध नहीं हुआ। मगर वे यह नहीं सोचने कि उन्होंने ऐसा भजन किया है जो परमात्मा को पसंद नहीं है। यों तो रावण भी भक्त था । लेकिन मंदादरी ने उससे कहा सुनहु नाथ ! सीता विन दीन्हें । हित न तुम्हार शंभु बज कीन्हें ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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