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________________ ११८ ] [ जवाहर - किरणावली धार कर शुरू कर दो। मैं जो मार्ग बतला रहा हूँ उस मार्ग पर बड़े से बड़ा विद्वान् भी चल सकता है और बालक भी चल सकता है । पण्डित और बालक दोनों के लिए यह मार्ग सुगम है । इस मार्ग का अवलम्बन लोगे तो आपका काम सिद्ध हो जाएगा । वह मार्ग यह है तो सुमरण त्रिन आणि कलियुग में, न कोइ श्रधागे । श्रवर मैं वारी जाऊँ तो सुमरण पर, दिन-दिन प्रीति वधारी । पदमप्रभु पावन नाम तिहारो, पतित उधारनहारो ॥ पदम० ॥ धरम को मरम महारस, सो तुम नाम उचारो | मन्त्र नहीं कोउ दूजो, त्रिभुवन मोहनगारो ॥ पदम० ॥ इस प्रकार का अभ्यास करो और इस आत्मा को समझा लो कि हे आत्मा ! तू इस सर्वव्यापक परमात्मा को छोड़कर दुरात्मा मत बन । तू उस परमात्मा का ध्यान उठते-बैठते कर और आठों पहर उसका जप चलने दे । उसके जप में आठों पहर रहने से तेरे पास पाप फटकेगा ही नहीं । परम या purgatiom सम मैं संतों, सतियों, श्रावकों और श्राविकाओं से कहता हूँ कि जो काम परमात्मा की श्राशा में हैं उनके लिए तो कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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