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[ जवाहर - किरणावली
धार कर शुरू कर दो। मैं जो मार्ग बतला रहा हूँ उस मार्ग पर बड़े से बड़ा विद्वान् भी चल सकता है और बालक भी चल सकता है । पण्डित और बालक दोनों के लिए यह मार्ग सुगम है । इस मार्ग का अवलम्बन लोगे तो आपका काम सिद्ध हो जाएगा । वह मार्ग यह है
तो सुमरण त्रिन आणि कलियुग में, न कोइ श्रधागे ।
श्रवर
मैं वारी जाऊँ तो सुमरण पर, दिन-दिन प्रीति वधारी । पदमप्रभु पावन नाम तिहारो,
पतित उधारनहारो ॥ पदम० ॥
धरम को मरम महारस,
सो तुम नाम उचारो | मन्त्र नहीं कोउ दूजो,
त्रिभुवन मोहनगारो ॥ पदम० ॥
इस प्रकार का अभ्यास करो और इस आत्मा को समझा लो कि हे आत्मा ! तू इस सर्वव्यापक परमात्मा को छोड़कर दुरात्मा मत बन । तू उस परमात्मा का ध्यान उठते-बैठते कर और आठों पहर उसका जप चलने दे । उसके जप में आठों पहर रहने से तेरे पास पाप फटकेगा ही नहीं ।
परम
या
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सम
मैं संतों, सतियों, श्रावकों और श्राविकाओं से कहता हूँ कि जो काम परमात्मा की श्राशा में हैं उनके लिए तो कुछ
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