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________________ बीकानेर के व्याख्यान [११७ - --- -- --- -- --- - तार देता है । इस प्रकार तू तारक है भी और नहीं भी है। मशक में हवा भर कर उसका मुँह बाँध दिया जाय भार उसका आश्रय लेकर तेरा जाय तो वह तार देती है। लेकिन अगर उसमें हवा न भरी जाय या हवा के बदले पत्थर भरे जाएँ तो वह नहीं तिरा सकती। वैसे वायु तो सभी जगह है लेकिन जो उसे अपमा कर भर लेता है उसी को वह तिराती है। प्राचार्य कहते हैं-हे प्रभु ! तू वायु के समान है और मैं मशक के समान । अगर मैं तुझे हृदय में धारण कर लूँ तो तु विना तारे नहीं रहेगा। अगर तुझे हृदय में धारण न करूँ और तेरे बदले विषय-कषाय आदि पत्थर भर लूँ तो तू कैसे तारेगा? फिर तेरा क्या दोष है ? वायु मशक को तिराने वाली है लेकिन वह कहती है कि मुझे अपने भीतर भरो तो मैं तुझे तारूँगी। अन्यथा मेरे भरोसे मत रहना। इसी तरह परमात्मा कहता है-मुझे हृदय में धारण कर लो तो मैं संसार-सागर के जल में तुम्हें नहीं डूबने दूंगा। अगर ऐसा न किया तो मैं क्या कर सकता हूँ! मैं अभी कह चुका हूँ कि आत्मा से आत्मा का उद्धार करो। आत्मा से आत्मा का उद्धार किस प्रकार करना चाहिए, यही बात मैं थोड़े में कहता हूँ। अगर आपको अपना उद्धार करना है तो ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो। अपना उद्Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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