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________________ ११६] . [जवाहर-किरणावली उन्नति खूब की थी लेकिन उलटी समझ के कारण उससे हानि भी खूब उठाई । बहुतों ने समझ लिया कि धर्म के लिए हमें मिहनत भी न करनी पड़े और ईश्वर हमें सीधा मोक्ष भी भेज दे । यह गलत समझ हानि का कारण बनी । मिहनत से बचने वालों ने धर्म और ईश्वर को समझा ही नहीं है। अगर ईश्वर विना परिश्रम किये ही तारता होता तो वह दयालु होने के कारण किसी के कहने की राह ही न देखता। अगर वह स्वयं ही सब का उद्धार करता है तो किसी जीव को दुखी क्यों रहने देता है ? क्या वह भी आलसी है ? वास्तव में ईश्वर तारनहार तो है पर जब तुम तरने के लिए तैयार होगे तभी वह सहायता करेगा। इस बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं स्व तारको जिन ! कथं भविनां त एव, स्वामुद्वहन्ति दृदयेन यदुत्तरन्तः । यद्वा हतिस्तरति यजलमेष नून-- मन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुभावः ।। -कल्याणमन्दिर । तू जगत् का उद्धार करने वाला नहीं है। अगरतू उद्धार करने वाला होता तो संसार दुखी ही न रहता और न मुझे संसार के दुख भोगने पड़ते । अतएव सिवाय इसके कि तू तारक नहीं है, और क्या कहूँ ? मगर एक हिसाब से तू तारक भी है। जब कोई तुझे हृदय में धारण करता है तो तू उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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