________________
बीकानेर के व्याख्यान ]
[ १०९
-
-- --
-
डाल दिया था। इस पद का सही अर्थ यह है कि-दूसरा रूठता है तो रूठने दें । हे मन ! तू मत रूठ । अर्थात् दूसरा अगर मारता और गाली देता है तो तू क्रोध मत कर ।
'एक नारायण नहिं रूठे तो काट लूँ सब के चोटी पटा' इसका अर्थ स्पष्ट है । अगर मैं तुम्हारी बातों पर क्रोध करता तो क्या तुम मेरे पैरों में पड़तीं ? मैंने अपने मन को नहीं रूठने दिया तो तुम मेरे पैरों में गिरी ! यही तो चोटी-पट्टा काटना कहलाता है।
फूलां-बहुत ठीक, अब मैं समझ गई। पर एक श्लोक का अर्थ और समझा दीजिए ।
भगत-कौन-सा श्लोक ? फूलां
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं स्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥८॥ भगत-इसका अर्थ यह है कि तुझ में काम, क्रोध, आदि जितने पाप हैं, मेरी शरण में आने पर वे सब छूट जाएँगे। तात्पर्य यह है कि जहाँ पाप है वहाँ ईश्वर की शरण नहीं है
और जहाँ ईश्वर की शरण है वहाँ पाप नहीं है। ___ फूला-मैं आपकी कृतज्ञ हूँ। आपने मेरा भ्रम दूर कर दिया। आज मेरे नेत्र खुल गये। में कुछ का कुछ समझ बैठी थी।
इस कथा से स्पष्ट है कि शास्त्र के अभिप्राय को विपरीत समझ लेने से बड़ी गड़बड़ी हो जाती है। अतएव अन्यथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com