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[ जवाहर-किरणावली
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समझ लेना ध्यान का एक विघ्न है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि सच्चे धार्मिक या परमात्मान्के आराधक को अन्य प्राणियों के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए ! अगर आपको भगवान् के वचन पर श्रद्धा है तो जगत् के सब जीवों को अपना ही मानो। ऐसा करोगे तो भगवान्
आपके हैं, अन्यथा भगवान् रूठ जाएँगे। ____ 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' और 'सव्वभूअप्पभूअस्स' अर्थात् समस्त प्राणियों को अपना समझो। अपनी आत्मीयता की सीमा क्षुद्र मत रहने दो । तत्त्वदृष्टि से देखोगे तो पता चलेगा कि अन्य जीवों में और आपके अपने माने हुए लोगों में कोई अन्तर नहीं है।
इस प्रकार परिपूर्ण मैत्रीभावना को हृदय में स्थापित करके अगर प्रभु का ध्यान करेंगे तो आपका परम कल्याण होगा।
बीकानेर
२१-८-३०
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