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________________ बीकानेर के व्याख्यान] [१०१ करते होंगे ! मेरा इसके साथ परिचय नहीं है, फिर भी इसने पत्थर-सा मारा है। यह घर वालों के साथ कैसा सलूक करती होगी? सचमुच वे लोग धन्य हैं जो इसके इस दुष्टतापूर्ण व्यवहार को शांति के साथ सहन करते हैं ! अगर मैं इसके स्वभाव को और भड़का हूँ तो इसमें मेरी विशेषता क्या है ? मैं इसका मेहमान बना हूँ। किसी उपाय से अगर इसका सुधार कर सकूँ तो मेरा आना सार्थक हो सकता है। मन ही मन इस प्रकार विचार कर उसने फूलांबाई से कहा-आपने क्या ही अच्छी बात कही है ! यह भोजन की तैयारी और उसपर आपका यह बोलना मैंने आज ही देखा है। आप ऐसी हैं तभी तो यह तैयारी कर सकी हैं। फुलांबाई मन ही मन कहती है-ठाकुरजी का प्रताप धन्य है कि उन्होंने इसे भी मेरे सामने गाय बना दिया है ! प्रकट में वह बोली-अच्छी बात है, अब आप जीम लीजिए। दो-चार दिन ठहरोगे न ? ऐसा भोजन दूसरी जगह मिलना कठिन है। मेहमान-आप ठीक कहती हैं। ऐसा भोजन दूसरी जगह कदापि नहीं मिल सकता। मैं अवश्य दो-चार दिन रहूँगा । आपकी कृपा है तो क्यों नहीं रहूँगा ? उसने सोचा-इस भोजन को अमृत बना लेना ही काफी नहीं है। इस बाई को भी मैं अमृत बना लूँ तो मेरा कर्तव्य परा होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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