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[जवाहर-किरणावली
वास्तव में सुधार का काम बड़ा टेढ़ा होता है। तलवार की धार प: चलने के समान कठिन है। सुधारक को बड़ी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इन कठिनाइयों में भी जो दृढ़ रहता है और अपने उद्देश्य की प्रशस्तता का खयाल रखकर विकट से विकट संकटों को खुशी के साथ सहन कर लेता है, वह अपने उद्देश्य में सफल होता है।
मेहमान जीम कर चला गया। पूछताछ करके उसने पता चलाया कि फूलांबाई का स्वभाव ही ऐसा है । यह केवल ठाकुरजी की भक्ति करती है और सबकी कम्बख्ती करती है। मेहमान ने सोचा-चलो यह ठीक है कि वह ठाकुरजी की भक्ति करती है। नास्तिक को समझाना कठिन है, जिसे थोड़ी-बहुत भी श्रद्धा है, उसे समझाना इतना कठिन नहीं है। __ मेहमान ने एक-दो दिन रहकर फूलांबाई के वाग्बाणों को खूब सहन किया और उसकी प्रकृति का भलीभाँति अध्ययन कर लिया। उसने समझ लिया कि यह ठाकुरजी के सामने सरको तुच्छ समझती है और इसने धर्म का स्वरूप उलटा समझ लिया है। उधर फूलांबाई सोचने लगी-कैसा बेशर्म है यह आदमी, जो हँसता हुआ मेरी सभी बातों को सहन करता जाता है। जो लोग मेरे आश्रित हैं, वे भी मेरे व्यवहार को देखकर अगर मुँह से कुछ नहीं कहते तो भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com