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________________ ( ७३ ) राजा 'भूतलपांड्य' जैनी थे। इस वंश के अन्य राजा भी जैन थे, जिनमें 'वीरपांड्य' प्रसिद्ध हैं । इन्होंने सन् १४३१ में गोम्मटदेव की विशाल काय मूर्ति कारकल में स्थापित कराई थी । १० - 'चोलराजवंश' यद्यपि मूल में जैनधर्मानुयायी था, परन्तु उपरान्तकाल में वह इस धर्म से विमुख हो गया था । इतने पर भी जैनधर्म के उपासक इनसे श्रादर पाते रहे थे । कुर्ग व मैसूर के मध्यवर्ती प्रदेश पर राज्य करने वाले 'चंगलवंशी राजा इनके आधीन थे; परन्तु वे पक्के जैनधर्मानुयायी थे । इनकी उपाधि महामडलीक मण्डलेश्वर थी । इनमें राजेन्द्र, मादेवन्ना, कुलोत्तुङ्ग उदयादित्य आदि प्रसिद्ध राजा हैं । चोलों के अथक युद्ध में इन्होंने सदैव उनका साथ देकर अपना भुजविक्रम प्रकट किया था । ११ - चोलों की प्राचीन राजधानी श्ररदूर में राज्य करने बाला' कोंगल्वंश' * भी जैनधर्मानुयायी था । 'वादिभ', 'राजेन्द्रचोल पृथ्वीमहाराज', 'राजेन्द्रचोल कोंगत्त', 'अदतरादित्य' और 'त्रिभुवनमल्ल' ये इस वंश के राजा थे । १२ - 'चेरवंश' भी प्राचीनकाल से जैनधर्म का उपासक था । उपरान्तकाल में चेर (चीरा ) वंश के शासकों की राजधानी वान्जी थी । 'एलिन', 'राजराजव पेरुमल' इस वंश के * सम्भवतः इसी श्रंग को निडगुलवश भी कहते हैं । यह अपने को सूर्यवंशी और करिकाल भेल का वंशज बताता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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