SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की खूब श्रीवृद्धिकी थी। यह "महामण्डलेश्वर, 'समाधिगत पञ्चमहाशब्द, त्रिभुवनमल्ल द्वारावतीपुरवराधीश्वर, यादवकुलाम्बर ध्र मणि,समयक्त्वचूड़ामणि, मलपरोन्गण्ड,तलकाडुकोङ्ग नङ्गलि-कोटलूर-उच्छनि-नोलम्बवाड़ि-हानुगल-गोण्ड, भुजबल, वीराङ्गद आदि प्रतापसूचक पदवियों के धारक थे! इन्होंने इतने दुर्जय दुर्ग जीते, इतने नरेशों को पराजित किया व इतने आश्रितों को उच्च पदों पर नियुक्त किया कि जिससे ब्रह्मा भी चकित हो जाता है !" इनकी रानी शान्तल देवी भी परम जिन भक्त थीं! _ "जिस प्रकार इन्द्र का बज्र बलराम का हल, विष्णु का चक्र, शक्तिधर व अजुन का गाण्डवी, उसी प्रकार विष्णुवर्द्धन नरेश के "गगराज” सहायक थे!" गगराज इनके मंत्री और "सेनापति" थे । यह कौडिन्य गोत्रधारी बुधमित्र के सुपुत्र थे और जैनों के मूलसंघ के प्रभावक थे। यहां तक कि धर्म क्षेत्र में इनका श्रासन चामुण्डराय ले भी बड़ा चढ़ा है। इनकी निम्न उपाधियाँ इनके सुकृत्य और सुकीर्ति को खुले पृष्ठ की तरह उपस्थित करती है___ 'समाधिगण पञ्जमहाशब्द, महासामन्ताधिपति,महाप्रचंड नायक, वैरिभयदायक, गोत्रपवित्र, बुधजनमित्र, श्री जैनधर्मा मृताम्बुधिप्रवर्द्धन सुधाकर, सम्यक्त्वरत्नाकर, आहार भयभैषज्यशास्त्रदान बिनोद, भव्यजन हृदयप्रमोद, विष्णुभुवर्द्धनभूपाल होयसल महाराजराज्याभिषेक पूर्णकुम्भ, धर्महम्योधरण मूलस्थShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy