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________________ ( ६८ ) देशहित के अनेक कार्य कर सके थे । निम्नश्रेणी के लोगों को धर्म और जीविका संबंधी सुविधायें पहुँचाने के लिये इन्होंने शुभप्रणाम किया था । श्रवणबेलगोला पर श्रद्वितीय विशालकाय मूर्ति इन्होंने ही निर्माण कराई थी । वहां पर अनेक सुन्दर मन्दिरों के निर्माता यह ही हैं । इनके गुरु श्री अजित सेनस्वमी और श्री नेमिचन्द्राचार्य थे ! आश्चर्य तो यह है कि सदैव संग्राम में व्यस्त रहने वाले इस वीर ने जैन शास्त्रों की रचना की थी ! इसी उदाहरण से एक जैन वीर का आदर्श स्पष्ट हो जाता है । वह युद्ध करते हुये भी उसके परिणाम से निर्तिप्त रहता है और उसकी श्रात्मा युद्ध क्षेत्र में भी इतनी शान्त और सुदृढ़ रहती है कि वह धर्म विषय पर भी साहित्य रचना कर सक्ता है। श्री चामुण्डराय ने यही किया था । उनकी एक नहीं अनेक उपाधियाँ जो उन्होंने शत्रुओं को परास्त करें प्राप्त की थी, उनको शौर्य और विक्रम को स्वतः प्रगट करती है । वह समरधुरन्धर, वीर मार्तण्ड, रणराजसिंह वैरी कुलकाल दण्ड, भुजमार्तण्ड ओर समर-हरशुराम थे । तथापि अपनी सत्यनिष्ठ के लिए वे सत्ययुधिष्ठर थे और 'राय' पद उन्हें उक्त मूर्ति की स्थापन के उपलक्ष में मिला था ! सारांश जैनों में वह एक महान् सेनापति, दक्ष मंत्री, व्रती धर्मात्मा और श्रेष्ठ कवि थे ! ५- 'हाटसलवंश' के राजा भी जैनधर्म के पोषक थे । ग्यारहवीं शताब्दि में यह वंश समुन्नत था । इसमें विष्णुवर्द्धन नरेश बड़े प्रभाव शाली थे। इन्होंने अपने बाहुबल से राज्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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