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शैलीका एक ही मंदिर है । इसमें सप्तफणमंडित भ० पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है । इसके स्तंभ- छत और दीवारें शिल्पकला के पूर्व कार्य हैं । इस मंदिर को ब्राह्मण सचिव चंद्रमौलिकी पत्नी
चिक्कदेवी ने सन् १९८१ ई० में बनवाया था । वह स्वयं जैनधर्म - भक्ता थीं । उनका अन्तरजातीय विवाह हुआ था ।
इस मन्दिर के प्राकार के पश्चिमी भाग में 'सिद्धान्तवस्ती' नामक मन्दिर है, जिसमें पहले सिद्धान्तग्रंथ रहते थे । बाहर द्वार के पास दानशाले बसती है, जिसमें पंचपरमेष्ट्री की मूर्ति विराजित है ।
'नगर जिनालय' बहुत छोटा मन्दिर है, जिसे मन्त्री नागदेव ने सन् १९६५ ई० में बनवाया था ।
'मंगाईबसती' शान्तिनाथस्वामी का मन्दिर है चारुकीर्ति - पंडिताचार्य की शिष्या, राजमंदिर की नर्तकी - चूड़ामणि और बेलुगुलुकी रहनेवाली मंगाईदेवी ने यह मंदिर १३२५ ई० में बनवाया था ! धन्य था वह समय जब जैनधर्म राजनर्तकियों के जीवन को भी पवित्र बना देता था !
'जैनमठ' श्री भट्टारक चारुकीर्तिजी का निवासस्थान है । इसके द्वारमंडप के स्तंभोंपर कौशलपूर्ण खुदाई का काम है। मंदिर में तीन गर्भग्रह हैं, जिनमें अनेक जिनबिम्ब विराजमान हैं । इनमें 'नवदेवता' मूर्ति अनूठी है। पंचपरमेष्टियों के अतिरिक्त
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