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( ७१ ) गंगराज ने सन् १११७ ई० में बसाया था। सेनापति रेचिमय्याने यहां पर एक अतीव सुन्दर 'शान्तिनाथ वस्ती' नामक मन्दिर बनवाया था। यह मन्दिर होयसल शिल्पकारी का अद्वितीय नमूना है। - इसके नकाशीदार स्तम्भों में मणियों की पच्चीकारी का काम दर्शनीय है। स्तम्भ भी कसौटी के पत्थर के हैं । इसके दर्शन करके हृदय आनन्द विभोर होता है और मस्तक गौरव से स्वयमेव ऊंचा उठता है । जैन धर्म का सजीव प्रभाव यहाँ देखने को मिलता है।
इसी गांव में दूसरे छोर पर तालाब किनारे 'ओरगलबस्ती' नामक मन्दिर है, जिसकी प्राचीन प्रतिमा खंडित हुई तालाब में पड़ी है। नई प्रतिमा विराजमान की गई है।
___ इसके अतिरिक्त श्रवणवेल्गोल गांव में भी कई दर्शनीय जिन मन्दिर हैं, । गांव भर में 'भण्डारी-वस्ती' नामक सब से बड़ा है। इसके गर्भ गह में एक लम्बे अलंकृत पाद-पीठ पर चौबीस तीर्थकरों की खड्गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। इसके द्वार सुन्दर हैं। फर्श बढ़ी लम्बी २ शिलाओं का बना हुआ है । मन्दिर के सामने एक अखण्ड शिला का बड़ा-सा मानस्तम्भ खड़ा है। होयसल नरेश नरसिंह प्रथम के भण्डारी ने यह मन्दिर बनवाया था। राजा नरसिंह ने इस मन्दिर को सवणेरु गांव भेट किया था और इसका नाम 'भव्यचड़ामणि' रक्खा था।
'अकनवस्ती' नामक मन्दिर श्रवणवेल्गोल में होयसल-शिल्प
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