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इस रमणीक मंदिर को सेनापति चामुंडराय ने १८२ ई० में बनवाया था। बाहरी दीवारों में खंभे खुदे हुए हैं जिनमें मनोहर चित्रपट्टिकायें बनी हैं। छत की मुडेलों और शिखिरों पर मनोहारी शिल्पकार्य बना है। ऊपर छत पर चामुंडरायजी के सुपुत्र जिनदेव ने एक अट्टालिका बनवाई और उसमें पार्श्वनाथजी का प्रतिविम्ब विराजमान कराया था।
पास में ही 'आदिनाथ देवालय' है. जिसे 'एरडकवस्ती' कहते हैं । इसे होयसल-सेनापति गंगराज की धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीदेवी ने सन् १११८ ई० में बनवाया था।
___'सवतिगंधवारण' वस्ती भी काफी बड़ा मंदिर है। इसे होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन की रानी शांतलदेवी ने बनवाया था
और इसमें भ० शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान की थी। इस मूर्तिका प्रभामंडल अतीव सुन्दर है ।
'बाहुबलिवस्तो' रथाकार होने के कारण 'तेरिनवस्ती' कहलाती है, क्योंकि कन्नड में रथ को तेरु कहते हैं। इसमें श्री बाहुबलिजी की मूति विराजमान है।
"शांतीश्वरवस्ती' मंदिर भी होयसल कालका है । 'इरुवेब्रह्मदेवमंदिर' में केवल ब्रह्मदेव की मूर्ति है यहाँ दो कुंड भी हैं। __ इस पर्वत के उत्तर द्वार से उतरने पर जिननाथपुर का पूर्ण दृश्य दिखाई पड़ता है। जिननाथपुर को होयसल सेनापति
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