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प्राचीन और दो शिखिरों वाला है । इस मन्दिर को करीब २०० वर्ष पहले कटक के सुप्रसिद्ध दिग० जैन श्रावक स्व० चौधरी मंजलाल परवार ने निर्माण कराया था; परन्तु इस मन्दिर से भी प्राचीन काल की जिन प्रतिमाये विराजमान हैं । मन्दिर के पीछे की ओर सैंकड़ों भग्नावशेष पाषाणादि पड़े हैं। जिनमें चार प्रतिमायें नन्दीश्वर की बताई जाती थीं। इस स्थान को 'देव सभा' कहते हैं । 'आकाश गंगा' नामक जल से भरा कुण्ड है। इसमें मुनियों के ध्यान योग्य गुफायें हैं । आगे 'गुप्तगंगा'-'श्यामकुण्ड'
और राधाकुण्ड' नामक कुण्ड बने हुए हैं। फिर राजा इन्द्रकेसरी की गुफा है, जिसमें आठ दिजैन खड्गासन प्रतिमायें अङ्कित हैं। उपरान्त २४ तीर्थङ्करों की दिग० प्रतिमाओं वाली आदिनाथ गुफा है। अन्ततः बारहभुजी गुफा मिलती है, जिसमें भी २४ जिन प्रतिमायें यक्षिणी की मूर्तियों सहित हैं । इन सब की दर्शनपूजा करके यात्रियों को भुवनेश्वर स्टेशन लौट आना चाहिये । इच्छा हो तो पुरी जाकर समुद्र का दृश्य देखना चाहिये । पुरी हिन्दुओं का खास तीर्थ है । जगन्नाथजी के मन्दिर के दक्षिण द्वार पर श्री आदिनाथजी की प्रतिमा मनोहर ही है। वहां से खुरदारोड होकर मद्रास का टिकिट लेना चाहिये । बीच में कोहन तीर्थस्थान वहीं है । किराया १६) है।
मदरास
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