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एक बड़ा बंदरगाह है। एक दिग. जैनमंदिर और चैत्यालय है अब तक दि० जैनधर्मशाला भी बन गया है । यहाँ के अजायबघर में अनेक दर्शनीय प्रतिमायें हैं। विक्टोरिया पबलिकहाल में काले पाषाण की श्री गोम्मटस्वामी की कायोत्सर्ग प्रतिमा अतिमनोहर है। मदरास के आसपास जैनियों के प्राचीन स्थान विखरे पड़े हैं । प्राचीन मैलापूर समुद्र में डब गया है और उसकी प्राचीन प्रतिमा, जो श्री नेमिनाथ की थी, वह चिताम्बर में विराजमान है। उसके दर्शन करना चाहिये । यही वह स्थान है जहाँ पर तामिल के प्रसिद्ध नीति-ग्रन्थ 'कुर्सल' के रचयिता रहते थे । कहते हैं कि वह ग्रन्थ श्री कुन्दकुन्दाचार्य की रचना है। पुलहल भी एक समय जैनियों का गढ़ था | कुरुम्बजाति के अर्द्धसभ्य मनुष्यों को एक जैनाचार्य ने जैनधर्म में दीक्षित किया था
और वह अपना राज्य स्थापित करने में सफल हुये थे । कुरुम्बाधिराज की राजधानी पुलल थी । वहाँ पर एक मनोहर ऊँचा जिनमंदिर बना हुआ था । मद्रास से १० मील की दूरी पर श्री क्षेत्र पुम्कुल मायावरम् के मंदिर दर्शन करने योग्य हैं । पौनेरी प्राम में एक पर्णकुटिका में श्री वर्द्धमान स्वामी की प्रतिमा काले पत्थर की कायोत्सर्ग जमीन से मिली हुई विराजमान है । वह भी दर्शनीय है । राज़ यह कि मदरासका क्षेत्र प्राचीनकालसे जैन-धर्म का केन्द्र रहा है। आज इस शहर में जैनधर्मके प्रभावको बतलाने वाला एक बड़ा पुस्तकालय बहुत जरूरी है। यहाँ से कांजीवरम्
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