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(३) तीर्थयात्रा के लाभ और तीर्थों की रूपरेखा । तीर्थयात्रा क्यों करनी चाहिये ? इस प्रश्न का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है; क्योंकि जो महानुभाव तीर्थों के महत्व को जान लेगा, वह स्वयं इसका समाधान कर लेगा । यदि वह विशेष पुण्यबन्ध करना चाहता है और चाहता है रत्नत्रयधर्म की विशेष आराधना करना तो वह अवश्य ही तीर्थयात्रा करने के लिये उत्सुक होगा । उसपर, घर बैठे ही कोई अपने धर्म के पवित्र स्थानों का महत्व और प्रभाव नहीं जान सकता। सारे भारतवर्ष में जैन तीर्थ बिखरे हुए हैं। उनके दर्शन करके ही एक जैनी धर्म- महिमा की मुहर अपने हृदय पर अङ्कित कर सकता है, जो उसके भावी जीवन को समुज्ज्वल बना देगी । यह तो हुआ धर्मलाभ, परन्तु इसके साथ व्याजरूप देशाटनादि के लाभ अलग ही होते हैं । देशाटन में बहुत-सी नई बातों का अनुभव होता है और नई वस्तुओं के देखने का अवसर मिलता है। यात्री का वस्तुविज्ञान और अनुभव बढ़ता है और उसमें कार्यकरने की चतुरता और क्षमता आती है । घर में पड़े रहने से बहुधा मनुष्य संकुचित विचार का कूपमंडूक बना रहता है; परन्तु तीर्थयात्रा करने से हृदय से विचार संकीर्णंता दूर होजाती है, उसकी उदारवृत्ति होती है । वह आलस्य और प्रमाद का नाश करके साहसी बन जाता है । अपना और पराया भला करने के लिये वह तत्पर रहता है । अपने पूर्वजों के गौरवमई अस्तित्व का परिचय
जैनी
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