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( १५ ) प्राचीन स्थानों का दर्शन करके ही पासकते हैं, जो कि तीर्थयात्रा में सुलभ हैं । साथ ही वर्तमान जैनसमाज की उपयोगी संस्थाओं जैसे जैन कालिज, बोर्डिङ्ग हाउस महाविद्यालय, श्राधिकाश्रम आदि का निरीक्षण करने का अवसर मिलता है। इस दिग्दर्शन से दर्शक के हृदय में आत्मगौरव की भावना जागृत होना स्वाभाविक है। वह अपने गौरव को जैनसमाज का गौरव समझेगा और ऐसा उद्योग करेगा जिस में धर्म और संघ की प्रभावना हो । तीर्थयात्रा में उसे मुनि, आर्यिका. आदि साधु पुरुषों के दर्शन और भक्ति करने का भी सौभाग्य प्राप्त होता है। अनेक देशों के सामाजिक रीतिरिवाजों और भाषाओं का ज्ञान भी पर्यटक को सुगमता से होता है। घर से बाहर रहने के कारण उसे घर धंधे की आकुलता से छुट्टी मिल जाती है। इसलिये यात्रा करते हुए भाव बहुत शुद्ध रहते हैं । विशाल जैनमंदिरों और भव्य प्रतिमाओं के दर्शन करने से बड़ा आनन्द आता है। अनेक शिलालेखों के पढ़ने से पूर्व इतिहास का परिज्ञान होता है। गर्ज यह कि तीर्थयात्रा में मनुष्य को बहुत से लाभ होते हैं।
यात्रा करते समय मौसम का ध्यान रखकर ठडे और गरम कपड़े साथ लेजाना चाहिये; परन्तु वह जरूरत से ज्यादा नहीं रखना चाहिये । रास्ते में खाकी टिवल की कमीजे अच्छी रहती हैं। खाने पीने का शुद्ध सामान घर से लेकर चलना
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