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सिद्धवरकूट सिद्धवरकूट से दो चक्रवर्ती और दस कामदेव आदि साड़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । यहाँ एक कोट के अन्दर आठ दि० जैन मन्दिर और ४ धर्मशालायें हैं। प्रतिमायें अतीव मनोज्ञ हैं । एक मंदिर जंगल में भी है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य अत्यन्त सुन्दर और शान्त है । क्षेत्रके एक तरफ नर्मदा है। दूसरी तरफ जंगल और पहाड़ियां हैं। कितनी सुन्दर तपोभूमि है। यहाँ सिद्धवरकूट के पास ही हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ ओंकारेश्वर है। यहां से मोरटका आना चाहिये और वहाँ से सनावद स्टेशन जाना चाहिये।
ऊन (पावागिरि) सनावद से मोटर लारी द्वारा खरगैन जाना चाहिये । खरगैन से उन (पावागिरि) क्षेत्र दो मील है । यह प्राचीन अतिशयक्षेत्र पावागिरि नाम से हाल ही में प्रसिद्ध हुआ है । यहां एक धर्मशाला और एक श्राविकाश्रम और धर्मशाला में एक नया मन्दिर भी बनवाया गया है । नया मन्दिर बड़वाह की दानशीला वेसरवाई ने बनवाया है । यहाँ बहुत से मन्दिर और मूर्तियाँ जमीन से निकली हैं; जो दर्शनीय हैं और मालवा के उदयादित्य राजा के समय के बने हुए हैं। पुराने जमाने में यहाँ एक विद्यालय भी था । पाषाण पर स्वर-व्यंजन अंकित हैं ।
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