________________
(
१०२ )
उस पर तीर्थों -मंदिरों, राजमहलों, क्रीड़ाकुजों, झरनों और लह. लहाते बनों ने उसकी शोभा अनठी बना दी है। उसकी प्राचीनता भी श्री ऋषभदेवजी के समय की है । भरत चक्रवर्ती अपनी दिग्विजय में यहां आये थे। एक ताम्रपत्र से प्रगट है कि ई० पूर्व ११४० में गिरिनार (रैवत ) पर भ० नेमिनाथजी के मन्दिर बन गये थे। गिरिनार के पास ही गिरिनगर बसा था, जो आज कल जूनागढ़ कहलाता है। यहीं पर चन्द्रगुफा में आचार्यवयं श्री धरसेनजी तपस्या करते थे और यहीं पर उन्होंने भतबलि
और पुष्पदन्त नामक आचार्यों को आदेश दिया था कि वह अवशिष्ट श्रुतज्ञान को लिपिबद्ध करें! सम्राट अशोक ने यहीं पर जीव दया के प्रतिपादक धर्म लेख पाषाणों पर लिखाये थे। छत्रप रुद्रसिंह के लेख से प्रगट है कि मौर्य काल में एवं उसके बाद भी गिरिनार के प्राचीन मंदिर आदि तूफान से नष्ट हो गये थे । मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के गुरु श्री भद्रबाहु स्वामी भी गिरिनार पधारे थे । दि० जैन मुनिगण गिरिनार पर ध्यानलीन रहा करते थे। छत्रप रुद्रसिंह ने संभवतः उनके लिये गुफायें बनवाई थीं । श्री कुन्दकुन्दाचार्य भी गिरिनार की बन्दना करने
आये थे और उन्होंने श्री सरस्वतीदेवी की पाषाण मूर्ति के मुखसे 'दिगम्बर मत की प्राचीनता कहलवाकर दिगम्बर जैनों का प्रभुत्व प्रगट किया था । 'हरिवंशपुराण' में श्री जिनसेनाचार्यजी ने लिखा है कि अनेक यात्रीगण श्री गिरिनार की वंदना करने आते
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com