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( १५ ) दो दि जैन मंदिर है । नईपोल के पास जैन धर्मशाला है । राजमहल आदि यहाँ कई दर्शनीय स्थान हैं कलाभवनमें हस्तकला अच्छी सिखाई जाती है और ओरियंटल लायब्रेरी में प्राचीन साहित्यका अच्छा संग्रह है। यहाँ से पावागढ़ लारियों में होआना चाहिये ।
पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पावागढ़ की चाँपानेर धर्मशाला में ठहरे । यहाँ दो मन्दिर हैं । एक सुन्दर मानस्थंभ हाल ही में बना है। यहाँ पर मेला माघ मुदी १३ से तीन दिन तक स. १८३८ से भरता है । धर्मशालाके पीछे से ही पर्वत पर चढ़ने का मार्ग है । मार्ग कंकरीला होने के कारण दुर्गम है। लगभग छै मील की चढ़ाई है, जिसमें कोट के सात बड़े २ दरवाजे पार करने पड़ते हैं । पांचवे दरवाजे के बाद छटवे द्वार के बाहर भीत में एक दिगम्बर जैन प्रतिमा पद्मासन ।। फीट ऊंची उकेरी हुई लगी बताई गई थी, जिस पर सं० ११३४ लिखा था; परन्तु हमें वह देखने को नहीं मिली । अन्तिम 'नगारखाना दरवाजा' पार करने पर दि. जैनियों के मन्दिर प्रारम्भ होते हैं। जो लाखों रुपये की लागत के कुल पांच हैं। मध्यकाल में पावागढ़ पर अहमदाबाद के बादशाह मुहम्मद बेगढ़ा का अधिकार होगया था । उसने इन मन्दिरों को बहुत कुछ नष्ट भष्ट कर दिया था। बहुतेरे मन्दिर अब भी टटे पड़े हैं । कतिपय
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