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मन्दिरों के शिखिर फिर से बनवा दिये गये हैं। इसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं यहां से श्री रामचन्द्रजी के पुत्र लव-कुश और लाटदेश के राजा पाँच करोड़ मुनियों के साथ मोक्ष गये बताये जाते हैं। ऊपर तीन मन्दिर समूह में हैं ? यह प्राचीन कारीगरी के बने हैं, परन्तु इनकी शिखरे नई बनाई गई प्रतीत होती है । इनमें से पहिले मन्दिरोंके सामने एक गजभर ऊंचा स्तम्भ बनाहुआ है, जिस पर दो दि० जैन प्रतिमायें मध्यकालीन प्रतिष्ठित है । मन्दिरों में संवत् १५४६ से १९६७ तक की प्रतिमायें विराजमान हैं। दूसरे मन्दिर में विराजित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी की हरित पाषाण की प्रतिमा मनोज्ञ और अतिशययुक्त है। इस प्रतिमा को सं० १६६० बैशाख शुक्ले १३ के दिन मूलसंघ के भ० श्री प्रभाचन्द्रजी के प्रति शिष्य और भ० सुमतिकीर्तिदेवके शिष्य वादीमदभंजन श्री भ० वादीभषण के उपदेशानुसार अहमदाबाद निवासी किन्हीं हूमड़ जानीय श्रावकमहानुभाव ने प्रतिष्ठित कराया था। यहां अन्य मन्दिरों का जीर्णोद्धार होरहा है । थोड़ी दूर आगे चलने पर एक और मन्दिर मिलता है, जिसका जीर्णोद्धार श्री चुन्नीलालजी जरीवाले द्वारा सं० १९६७ में कराया गया है
और तभी की प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा भी विराजमान है । फिर तालाब के किनारे दो मंदिर हैं । एक मदिर बड़ा है. जिसके प्राकार की दीवार पर कतिपय मनोज्ञ दि० जैन प्रतिमायें अच्छे शिल्पचातुर्य की बनी हुई हैं और प्राचीन हैं । इस मंदिर का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com