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सम्मेद शिखरजी की यात्रा का समाचार (लेखक-श्रीयुत कामता प्रसाद जैन )
-::जैनियों में तोर्थयात्रा के लिये चतुर्विध-संघ निकालने का रिवाज पुरातन है। पहले पहल यह रिवाज कब अमल में लाया गया, इसका पता लगाना अन्वेषक-विद्वानों का काम है। हाँ, यह हम जानते हैं कि मध्यकालीन भारत में इसका अधिक प्रचार था, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि उससे प्राचीन भारत के जैनियों में यह प्रथा प्रचलित थी या नहीं? वास्तव में यह एक स्वतंत्र विषय है, जिसके लिये साहित्य का गहन अध्ययन और परिशीलन वांछनीय है। प्रस्तुत लेख में हम पाठक, महाशयों के समक्ष एक तीर्थयात्रा-संघ का परिचय उपस्थित करेंगे, जो विक्रमीय १९वीं शताब्दी में मैंनपुरी से सम्मेदशिखर की यात्रा के लिये गया था। _ मैनपुरी संयुक्त प्रांत की आगरा कमिश्नरी का एक प्रमुख नगर है। वहाँ के ध्वंसावशेषों से मैनपुरी एक प्राचीन नगर प्रतीत होता है। कहते हैं कि उसका प्राचीन नाम मदनपुरी था; वही नाम अपभ्रंश भाषा में 'मइनपुरि' नाम से प्रसिद्ध हो गया। इससे अधिक उसका
र आरंभिक परिचय कुछ भी नहीं मिलता। हॉ. मुसलमानी जमाने में उसके
" अस्तित्व का पता चलता है और वह कन्नौज सरकार के अधीन था। किन्तु जब से मैनपुरी में चौहान क्षत्रियों का आगमन हुआ तब से उसकी श्री-वृद्धि खूब हुई। सन् १३६३ ई. में मैनपुरी का चौहान राजा प्रतापरुद्र नामक एक वीर क्षत्रिय था। बहलोल लादो के राज्यकाल में वही मैंनपुरी के प्रमुख जमोदार थे और उन्हीं के अधिकार में मौगाँव, पटियाली और कम्पिल मी थे। उनके पुत्र नरसिंहदेव थे, जिनको दरया खाँ लोदी ने सन् १४५४ में कत्ल किया था। परंतु इसपर भी उनकी संतान मैनपुरी की राज्याधिकारी बनी रही। ग़दर के ज़माने में राजा तेजसिंह उन्हों को संतति में २१वें उत्तराधिकारी थे। राजा प्रतापरुद्र ने उस नगर को काफी उन्नत बनाया था-चौहाना का अपना पक्का किला बन गया था सौर उस किले के आसपास धोरे-धीरे एक समृद्धिशाली नगर श्राबाद हो गया था। मथुरा से चौबे ब्राह्मण, मौगांव से कायस्थ और करीमगंज तथा कुरावली स सरावगी (जैनी) श्रा-आकर बस गये थे। राजा जसवंतसिंह ने सन् १७४९ ई० में अपने भाई मुहकमसिंह की याद में 'मुहकमगंज' बसाया था। अंग्रेजों ने ग़दर के बाद मैंनपुरी के राज-पद पर राजा तेजसिंह के चाचा भवानी सिंह जी को बिठाया था। अंग्रेजी हाकिमों में
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