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________________ महाप्रभाविक जैनाचार्य madumalID MILAID OILDHIDDLILUND CILIDUISMITA IISHIDDINDATIRID KAPOURUIDAIKlip to IDRID OTIOID OUR AIYAR श्रोचार्य श्री विजय ललित सरीश्वरजी उपाध्याय पदवी तथा वैसाख सुदी ५, १६६२ में मियां गांव में आपको आचार्य पद से विभूषित किया गया । प्रखर शिक्षा प्रचारक, मरुधर देशोद्धारक श्री उच्च कोटि के विद्वान होने के साथ २ पाप विजय ललितसूरिजो की गणना पंजाब केसरी युगवीर कुशल व्याख्याता, संगीतकार तथा सुन्दर गायक भी भाचार्य श्री विजय बल्लभ सूरीश्वर के शिष्य रत्नों ( थे। श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजराँवाला की में की जाती है। उनका नाम जिव्हा पर आते ही स्थापना के लिए आप ही ने बंबई के एक अजैन भाई मारवाड़ एवं गोडवाड़ का वह चित्र पाखों के सामने श्री विठ्ठलदास ठाकोरदास से बतीस हजार रुपये की भाजाता है जहाँ भगणित परिषह,दुःख तथा संकटों राशी भिजवाई । बंबई श्री संघ की विनती पर पूज्य को सहन करके प्राचार्य श्री विजय ललित सूरीश्वरजी गुरु देव ने होशियारपुर से आप श्री जी को मुनिराजे ने स्वयं अपने हाथों से जिन शासनोद्यान में कुछ श्री प्रभा विजयजी (वर्तमान विजय पूर्णानन्द सरि के पेडों का बीजारोपण किया । धीरे २ इन सुन्दर पौधों साथ बंबई भेजा। अहमदाबाद से पन्यास उमंग पर नन्हीं २ कलियों ने मस्ती भरी अंगड़ाई ली तथा विजयजी (वर्तमान में आचार्य श्री विजग उमंगसरि) आज वही कलियाँ मनोहर मुस्काते फूलों का रूप आदि को श्राप श्री ने साथ ले लिया। बबई में भाप धारण करके शोभायमान हो रही है। ने श्री महावीर विद्यालय के विकास कार्यों में पूरा योग प्राचार्य श्री विजय ललित सरिजी का जन्म वि० दिया । यातनाओं तथा तकलीकों से भापको साहस १९३८ में पंजाब गुजराँवाला जिले में भाखरीयारी मिलता था । काम को हाथ में लेकर आप पूरी तरह गांव में हुआ। आपका गृहस्थनाम लक्ष्मणसिंह तथा उसमें जुट जाते थे । आपके सतत् प्रयत्नों, प्रेरणामों पिता का नाम दौलत राम था। दौलतरामजी अपने तथा गुरुदेव के आशीर्वाद व आज्ञा से श्री पाश्वनाव अन्त समय बालक का भार बाल ब्रह्मचारी ला जैन विद्यालय-वरकाना की नींव पड़ी। यह सुन्दर धुढामल को सभला गए तथा उक्त लालाजी से ही विद्यालय वतमान में हाई स्कूल तक पहुंच चुका है। पालक लक्ष्मण ने आज्ञा पालन, विनयशीलता, वाणी फालना का जैन डिग्री कालेज आपको ही अमर देन माधुर्य तथा सेवा प्रादि सद्गुण सीखे । वैसाख सदी है। ये दोनों संस्थाए युगों तक भापकी यावं अष्टमी संवत् १९५४ में नारोवाल (पंजाब) में शान दिलाती रहेंगी। दीक्षा ग्रहण का तथा गुरु देव श्री विजय वल्लभ सूरि माघ सुदी १, २००५ को खुडाला (मारवार) में जी के शब्दों में आप "अद्वितीय गुरु भक्त शिव्यरत्न" में आप इस भौतिक शरार को त्याग कर स्वर्ग कहलाए। सिघार गए। सं० १९७६ में बाली (मारवाड़) में पन्यास पद, माघ सुदी ५, १६६२ में बीसलपुर (राजस्थान ) में -ले महेन्द्र कुमार मस्त-समाना-(पंजाब) Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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