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________________ ६२ जैन श्रमण संघ का इतिहास |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||| पूज्य श्री सोहनलालजी महाराज पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने वि० संवत् १६३३ में पूज्य श्री अमरसिंहजी महाराज सा० से दीक्षा ग्रहण की। शास्त्रों का गहरा अध्ययन कर अत्यन्त कुशलतापूर्वक आपने आचार्यपद पाया । आप जैन आगमों के विशेषज्ञ थे, ज्योतिष शास्त्रों के विद्वान् थे और बड़े क्रियापात्र आचार्य हुए। आपकी संगठन शक्ति असाधारण थी। हिन्दूविश्वविद्यालय, काशी में आपके नाम से श्री पार्श्वनाथ विद्यालय की स्थापना की गई है, जिसमें जैन धर्म के उच्च स्तर का शिक्षण दिया जाता है। AND OCTNUD SGEUND DICK जन्म हुआ । सं० १९८६ में इन्दौर में ऋषि सम्प्रदाय के चतुर्विध श्रीसंघ की तरफ से आपको पूज्य पदवी प्रदान की गई । पूज्य श्री काशीरामजी महाराज पूज्य श्री काशीरामजी म० सा० का जन्म पसरूर ( स्यालकोट ) में सं० १६६० में हुआ था । अठारह वर्ष की अवस्था में पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज के चरणों में आपने दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के केवल नौ वर्ष पश्चात् हो आपके लिए भावी प्राचार्य होने की घोषणा कर दी गई थी। इस पर से यह जाना जा सकता है कि आपको आचारशीलता तथा स्वाध्यायपरायणता कितनी तीव्र थी। आप अनेक गुणसन्न होते हुए भी आप अत्यन्त विनम्र थे। आपने पंजाब, वीर-संघ की याजना में शतावधानो पं० मुनि श्री रत्नचन्द्रजी महाराज सा० को खूब सहयोग प्रदान क्रिया । हैदराबाद और कर्णाटक प्रान्त में विचरण करते हुए आगमोद्धार का महान कार्य आपने लगातार तीन वर्ष के प्रत्यन्त कठोर परिश्रम से किया। इस कार्य में एकासन करते हुए दिन में ७-७ घण्टों तक आपको लिखने का कार्य करना पड़ा था । श्रुत सेवा की यह महान् आराधना कर समाज पर आपने महान् उपकार किया है । स्व. दानवीर सेठ श्रीसुखदेव सहाय ज्वालाप्रसाद जी द्वारा आगम-प्रचार के हेतु पूज्य श्री द्वारा हिन्दी अनुवादित ३२ आगमों की पेटियाँ अमूल्य भेंट दी गईं। इस महानतम कार्य के अतिरिक्त 'जैन तत्व प्रकाश' 'परमार्थ मार्ग दर्शक' 'मुक्ति सोपान' आदि महान् ग्रन्थों की रचना कर जैन एवं धार्मिक साहित्य की अभिवृद्धि की थी। कुल १०१ पुस्तकों का आपने सम्पादन किया है । स्था० जैन समाज में अपने ही साहित्य प्रकाशन का प्रारम्भ करवाया । शिक्षा प्रचार की तरफ आपका पूरा ध्यान था और यही कारण है आपके सदुपदेश से बम्बई में श्रीरत्न चिन्तामणी आठशाला और अमोलक जैन पाठशा कड़ा आदि की स्थापना हुई । संघ और समाज संगठन के आप अनन्य प्र ेमी यही कारण है कि अजमेर के साधु सम्मेलन पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज में आपने महत्वपूर्ण योग देकर सम्मेलन की आप मेड़ता मारवाड़ के निवासी श्री केवलचन्द्र जी कांसोटिया के सुपुत्र थे । सं० १९३४ में आपका कार्यवाही को सफल बनाने के लिए अग्रिम भाग लिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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