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________________ जाने की प्राचीनता MEROINTLoCi r lin1000ouTUDHATULHI-KITALDAKIRANSL A TINodalitDATHI मिश्र के पास इथोपिया में एक समय जैनसमण रहते (E) प्रो० एम० एस रामस्वामी ऐंगर ने कहा था थे (ऐशियाटिक रिसर्चेज ३-६) ___कि बौद्ध भिक्षु ष जैन श्रमण यूनान, रूस प परवे (७) मैसीडोनिया या ग्रीक मिश्रवासियों के पहुँचे थे (हिन्द, २५ जुलाई १६२९) अनुयायी थे। यूनानी तत्ववेत्ता पिथागोरस (पिहिता (१०) सम्प्रति ने ईरान अरब अफगानिस्तान में श्रव १ ) और पिहो ने जितोसूफिस्ट (जैन श्रमणों) धर्म प्रचार कराया था। सोलोम के सम्राट पाण्डुसे शिक्षा ली थी। वे जैनों के समान ही आत्मा को काभय ने ई० पूर्व ५६०-३०७ में निमन्च श्रमणों के अजर अमर और संसार भ्रमण सिद्धान्त को मानते लिए विहार बनषाये थे जो २१ शासकों के समय रहे थे । अहिंसा और तप का अभ्यास करते थे। यहाँ किन्तु, सम्राट पगामिनी (३८-१० ई० पू०) जैनों तक कि जैनों की तरह द्विदल (:ल) का भी निषेध करते थे। दही में मिलाकर द्विदल बैनी नहीं खाते . से कुद्ध हुए और उन्हें नष्ट करवाया ( महावंश) क्योंकि उसमें मम्मूखिम बीष उत्पन्न हो जाते हैं। (११) चीनी त्रिपिटक में भी जैनों का उल्लेख इस प्रकार यूनान में भी जैनधर्म का प्रभाव स्पष्ट है। है। प्रो० सिल्वॉ नेवी ने जावा सुमात्रा में जैनधर्म (E) यूनान के एथेन्स बगर में एक समय प्रमाणा- का प्रभाव व्यक्त किया था (विशाल भारत १.३) चार्य की निषधिका थी। ये जैन साधु वैराज (भारत) सारांशतः एक समय जैनधर्म ने विश्वभर में अहिंसा से यूनान आये थे। (इंडि: हि० क्वा० २१० २७३) संस्कृति का प्रचार किस था। जैन धर्म की प्राचीनता जैनधर्म के प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में संस्थापक बताया है । सचमुच यह सब इतिहासकारों इतिहास फार अभी भी पूर्ण खोज नहीं कर पाये है की अनभिज्ञता का ही परिणाम है। उन्होंने जैनधर्म स्थापि ज्यों ज्यों इस सम्बन्ध में अन्वेषण झेते रहे हैं को उसके मूल प्रन्यों से समझने का प्रयत्न ही नहीं त्यों त्यों इसको प्राचीनता के सम्बन्ध में व्याप्त किया है और म इस सम्बन्ध में कुछ अन्वेषणात्मक भ्रान्तियों का काफी निराकरण हुबा है । पाश्चात्य और गहराई में जाने का कष्ठ ही उठाया है । यथार्थ रूप पौर्वात्य इतिहास बार भी इसके इतिहास से अनभिज्ञ में निष्पक भाष से अन्वेषण करने का कष्ट उठाना रहे हैं । यही सघ कारण हैं कि कतिपय इतिहास तो दूर रहा कई इतिहास कारों ने इसके प्रतिद्वन्दी कारों ने जैनधर्म के आदि कालीन इतिहास के बारे धर्म ग्रन्थों के आधार पर ही अपने विचार व्यक्त में अपनी अल्पज्ञता के कारण कई भ्रान्ति मूलक कर जैनधर्म के सम्न्ध में अनेक भ्रान्ति मूलक गलत विचार प्रकट किये हैं। किसी ने इसे वैदिक धर्म का धारणाओं को जन्म दिया है। रूपान्तर माना है तो किसी ने इसे बौद्ध धर्म की किन्तु अब प्रायः समस्त इतिहास कार यह मानने शाखा बदाकर भगवान महावीर को इसका मूल लगे हैं कि आधुनिक इतिहास काल जिस समय से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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