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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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महम्मद सा० के पहले बैन उदेपशक भरबस्थान भी (१) वैकट्रिया के जिनोस्फिस्ट (जैवभ्रमण) का गये थे। इस प्रकार की भी कथा है। प्रचीन काल में उल्लेख में मगस्थनीजने किया है । (ऐसियन्द इंडिया जैन ब्यापारीगण अपने धर्म को सागर पार ले गये ५ १०४) थे यह बात सभव है। अरब दर्शनिक तत्ववेता (४) मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त भी जैन थे। अशोक अबल-अला (९७३-१०६८ ई०) के सिद्धान्तों पर के सप्तम स्तभ्म लेख से स्पष्ट है कि उन्होंने धर्म स्पष्टतः जैन प्रभाव दीखता है । वह केवल शाकाहार प्रचार का उद्योत किया था। अन्त में वह स्वयं करता था-दुध तक नहीं लेता था। दूध को पशुधों दिगम्बर जैनमुनि हो गये थे। (नरसिहाचार्य के स्तन से खींच निकालना यह पाप समझता था। श्रवणवेल्गोल' और स्मिथ अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया यथा शक्ति वह निराहार रहता था। मधु का भी उसने पृ० १५४) । स्याग किया था क्योंकि मधुमक्खियों को नष्ट करके (५) अशोक ने जिस धर्म का प्रचार किया था मधु इकट्ठा करने को वह अन्याय मानता था। इसी वह निराबौद्ध धर्म नहीं था । अशोक पर जैन सिद्धांतों कारण वह अण्डे भी नहीं खाता था पाहार और का अधिक प्रभाव था उसका प्रचार उन्होंने किया था। वस्त्रधारण में वह सन्यासी जैसा था। पैर में लकड़ी अशोक ने मिश्र मैसेडोनिया कोरेन्ध और साइनेरे को पगरखी पहनता था क्योंकि पशुचर्म के व्यवहार नामक देशों में अपने धर्माज्जुक भेजे थे, किन्तु इन को भी पाप मानता था। एक स्थल उसने नग्न रहने देशों में बौद्धधर्म के चिन्ह नही मिलते बल्कि जैन को प्रशंसा की है। उनकी मान्यता थी कि भिखारी धर्म का अस्तित्व उन देशों में रहा प्रतिभाषित होता कोविरम देने की अपेक्षा मक्खी की जीवन रक्षा है। मिश्र में जो धर्म चिन्ह मिले हैं उनका साम्य करना श्रेष्ठ है। उसके इस व्यवहार और कथन से जैन चिन्हों से हैं (मोरियन्टल अखबार १८०२ स्पष्ट है कि वह अहिंसा धर्म को कितने गम्भीर भाव पृ० २३-२४) से मानता था।
(६) मिश्रवासी जैनों के समान ही ईश्वर को बाबू कामताप्रसाद जैन ने इस विषय का संकलन जगत् का कत्ता नहीं मानते थे बल्कि बहु परमात्मवाद किया है वह इस प्रकार है:
के पोषक थे। परमात्मा उस व्यक्ति को मानते थे जो (१) भारत के पहले ऐतिहासिक सम्राट श्रोणिक
अनन्तरूपेण और पूर्ण हो । चे शाश्वत प्रात्मा का विमा न होने का अस्तित्व पशुओं तक में मानते थे। अहिंसा धर्म का प्रचारित किया था। (स्मिथ ऑक्सफोर्ड हिस्टीऑफ पालन यहाँ तक करते थे कि मछली, मूली, प्याज जैसे इन्डिया पृ० ४५)
शाक भी नहीं खाते थे वृक्षवल्कल के जूते पहनते थे। (२) श्रोणिक के पुत्र राजकुमार अभय के प्रयत्न अपने देवता होरस (भरहः १ ) की नग्न मूर्तियाँ से ईरान (पारस्प देश) के राजकुमार पाक जैन बनाते थे । (कानल्फूयेस ऑफ पायोजिट्स पृ० २ धर्मनुयायो हुए थे। (डिक्सनरी ऑफ जैन विकलो- व स्टोरी ऑफ मेन पृ. १८७-१८) इन बातों से ग्राफी पृ०७२)
मिश्र में एक समय जैनधर्म का प्रचार हुआ स्पष्ट है।
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