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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास GUPTADISUDDITIHIDATIOhio dINHAIY: ADMISHRADITINUTESTLivuxmumtIDOISOLUTIONSamaOHINDIm जगदगुरु श्री हीरविजय सरि की गई । इस समय गुजरात के दूधाराज के जैन मंत्री चांगा सिंघी ने बड़ा उत्सव किया। इसके बाद प्राचार्य मध्य युगीय जैनाचार्यों में जगद्गुरु श्रीहीरविजय देव पाटण गये जहां वहां के सबेदार शेरखां के सुरि एक अत्यन्त प्रभावशाली एवं धर्म प्रभावक मन्त्री समर्थ भनसाली ने आपके सन्मान में गच्छा. जैनाचार्य हुए हैं। आपकी कीति भारत में सर्वत्र नुज्ञा उत्सव किया। फैल रही थी । भापके अगाध पांडित्य और चामत्का संवत् १६२१ में आपके गुरु श्री विजयदान सरि रित तेजस्विता से मुगल सम्राट महान् अकबर बड़ा जो का वरड़ी ग्राम में स्वर्गवास हो गया-तब आप प्रभावित हुआ था। तपागच्छ नायक बनाये गये । ___ आपका जन्म पालनपुर कुरा नामक प्रोसवाल ___ गच्छ नायक बनने के पश्चात् तो आचार्य श्री जातीय सज्जन के घर सवत् १५८३ में हुआ था। की कीर्तिध्वजा उन्नत आकाश में फहराने लगी तत्कामाता का नाम नाथी बाई था । तेरह वर्ष की अवस्था लीन मुगल सम्राट अकबर महान ने भी आपकी यश में ही माता पिता स्वर्गवासी हो गये थे। एक समय गाथा सुनी आचार्य श्री से भेंट करने की प्रबल इच्छा आप अपनी बहन के यहां पाटण गये हुए थे वहां प्रकट की। सम्राट ने अपने गुजरात के सबेदार तपा गच्छीय आचार्य श्री विजयदान सूरि के उपदेश खान को फरमान भेजा कि वे बड़ी नम्रता और अदब श्रवण का पापको वैराग्य उत्पन्न हुआ और आपने के साथ जैनाचार्य श्री हीरविजय सूरिजी से प्रार्थना सं० १५६ में उक्त सूरिजी के पास दीक्षा ली । प्रार• करें कि आप दिल्ली पधाकर सम्राट अकबर को मिक शिक्षा के बाद श्राप गुरु आज्ञा ले धर्मसागर दर्शन प्रदान करने की कृग करें। । मुनि के साथ दक्षिण भारत के देवगिरी स्थान पर __ सबेदार साहिब ने अहमदाबाद के मुख्य २ जैन एक नैयायिक ब्राह्मण विद्वान के पास न्याय शास्त्र का आगेवानों को साथ ले आचार्य श्री से उक्त प्रार्थना अध्ययन करने पधारे। इन्हीं दिनों आपने न्यायशास्त्र की। आचार्य श्री ने भी इसे धर्म प्रभावना का सुअवके गहन अध्ययन के साथ साथ जैन तत्व ज्ञान, सर समझ : ह निंति स्वीकार करते हुए फतहपुर ज्योतिष, व्याकरण सामुद्रिक शास्त्र तथा अन्य दर्शनों सीकरी,जहां अकबर बादशाह का मुकाम था, की ओर का भी अध्ययन किया। बिहार किया। इस विहारकाल में बादशाह के कुछ इस प्रकार आपने गहन अध्ययन एवं स्वाध्याय से विशेष दूत भी आपके साथ साथ रहे। महान् पांडित्यता प्राप्त की। विद्याध्ययन कर वि० सं० विहारकाल में जब आप सिद्धपुर (गुजरात) १५-७ में जब वापस गुरुजी के पास लौटे तो आपको के पास सरोतरा गाँव में पधारे तो वहाँ भीलों के 'पण्डित' की पदवी प्रदान की गई। एक वष मुखिया सरदार अर्जुन आपके उपदेशों से बड़ा वाद उपाध्याय पद से विभूषित किया गया। तथा प्रभावित हुआ और अपने समस्त भील जाति के संवत् १६१० में प्राचार्य की उच्च उपाधि प्रदान साथ अहिंसामय जैनधर्म पालक बना। पपण Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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