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________________ ७८ जैन श्रमण संघ का इतिहास INDGIUIDAILSINDUIND DUIn J a patD DIUM to dillNTD-III IIIJDASHAINDOMIltodip OUNIPPINDIWARIDORANDID इसी प्राम में व्यतीत कर आबू तीर्थ करते हुए आप मन्दिर की प्रतिष्ठा की। तदन्तर बाबुलफजल के शिवपुरी (सिरोही ) पधारे । यहाँ के राजा ने बड़े विशेष निमंत्रण पर आप फतहपुर सिकरी पधारे । धामधूम से अगवानी की। सिरोही से सादड़ी, फतहपुर सिकरी पधारने पर सम्राट अकबर ने राणकपुरजी होते हुए मेड़ता पधारे। मेड़ता उस अपूर्ण स्वागत किया और आचार्य श्री को कई जागीरें, समय मुसलमानों के अधिकार में था। वहां शासक हाथी घोड़े आदि भेंट करना चाहा पर आचार्य सादिल मुलतान ने बड़ा भारी स्वागत किया। मेड़ता श्री ने सम्राट को बताया कि जन साधु कंचन कमिनी से फलौदी पधारने पर सम्राट अकबर के भेजे हुए के सर्वथा त्यागी होते हैं । उनके लिये संसार के ये श्री विमलहर्ष उपाध्याय ने आचार्य देव का सम्राट सारे वैभव तुच्छ हैं। की तरफ से स्वागत किया। प्राचार्य श्री सं० १३६६ तब सम्राट ने कुछ न कुछ भेंट तो अवश्य स्वीजेठ वदी १३ को फतहपुर सिकर। पधार और जगन- कार करने की प्रबल आग्रह किया। इस पर सरिजी मल कछा के महल में ठहराये गये। जगनमल ने कहा-आप समस्त कैदियों को बन्धन मुक्त कर तत्कालीन जयपुर नरेश भारमल के छोटे भाई थे। दीजिये और पीजरें में बन्द पक्षियों को छुड़वा फतहपुर सिकरी में सम्राट अकबर ने प्राचार्य दीजिये। इसके अतिरिक्त पयूपणों में आठों दिन देव के दर्शन किये और कुछ दिनों तक श्राचार्य अपने साम्राज्य में कतई जोव हिंसा न हो-ऐसे श्री की सेवा में प्रतिदिन व्याख्यान श्रवण का लाभ आदेश निकालने एवं तालाबों व सरोवरों में मन्छी लिया । सम्राट आचार्य श्री के सम्पर्क से बड़ा प्रभा- न पकड़ने के आदेश भेंट रूप में मांगे। आचार्य वित हुआ। उसका दृदय धर्म प्रवृति की और बढ़ा, श्री की इस मांग से सम्राट अत्यधिक आकर्षित हुआ उसने प्रजाप्रिय बनने के लिये कई कर हटा लिये, और उसने आचार्य श्री के परामर्षानुसार सभी फर. और काफी दान पुण्य किया। मान तत्काल जारी करवा दिये। गुजरात के नियों उसने आचार्य श्री को शाही महलों में दिल्ली पर लगने वाला जजिया कर भी माफ कर दिया। पधारने की विनंति की। अकबर के दरबार में बड़े २ सम्राट अकबर-आचार्य श्री से इतना प्रभावित विद्वान रहते थे-सभी विद्वान आचार्य श्री के उपदेशों हुआ कि उसने संवत् १६४० में आचार्य जी को से प्रभावित हुए । सम्राट की विद्वत् सभा के प्रमुख जगद गुरु" की उपाधि से विभषित किया । आचार्य अबुलफजल ने आचार्य श्री की बड़ी प्रशंसा लिखी श्री की जीवनी के सम्बन्ध में विशेष जानकारी हेतु सुप्रसिद्ध विद्वान मुनि श्री विद्या विजयजी कृत "सूरीवहां से बिहार का प्राचार्य श्री बाग के पास श्वर" नामक प्राथ पढ़ना चाहिये । शौरीपुरजी तीथे में दो जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा जैन इतिहास में जगद गुरु आचार्य होर विजय कर बागरे में श्री चिंतामणि पवनाथ भगवान के सरिजी का नाम सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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