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जेन श्रमण संघ का इतिहास
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अप्पा मितंम् मित्तम् च
__ "जैनधर्म की महत्ता के विषय में कुछ कहना दुप्पट्ठियो सुपट्टियो॥ मेरे सामर्थ्य के बाहर की बात है। मैं अपने अध्ययन अर्थात्-दुःख और सुख का कर्ता यह आत्मा के आधार पर यह अधिकार पूर्वक कह सकया हूँ कि ही है, अपना मित्र और शत्रु भी अपनी यह आत्मा भारतीय संस्कृति के विकास में जैनों ने असाधारण ही है-यदि बुरे मार्ग पर प्रवृत हुए तो यही पात्मा । योग दिया है । मेरा निजि विश्वास है कि यदि भारत शत्रु बनेगी और सुमार्ग पर प्रवृत होने पर यही में जैन धर्म का प्रभाव दृढ़ रहता तो हम संभवतः आत्मा मित्र सिद्ध होगी।
आज की अपेक्षा अधिक संगठित और महत्तर भारत इस प्रकार जैनधर्म मनुष्य को स्वातंत्र्य उपासक
वर्ष का दर्शन करते । जैनों की उपेक्षा करने से बनाता है। पुरुषार्थ द्वारा आत्मोन्नति की प्रेरणा करता
भारतीय इतिहास, सभ्यता और संस्कृति का सच्चा हुधा, मानव को मानवीय दासता से उन्मुक्त बनाता
चित्र हमारी आखों के सामने नहीं आसकता।" है। और उसे अपने परम और चरम साध्य को प्राप्त प्राचीन भारत के नकेवल धार्मिक बल्कि राज करने के लिये प्रेरणात्मक अदम्य उत्साह प्रदान करता नैतिक सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक कला कौशल .है । जैन धर्म अपनी इस विशेषता के कारण ही आदि सभी क्षेत्रों में भी जैन धर्म और जैनियों का "श्रमण धर्म" कहलाता है।
गौरव पूर्ण स्थान रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में इस धर्म ने 'श्रमण' का अर्थ है श्रम करने वाला और श्रमण अपनी वज्ञानिक एवं मौलिक विचार धाग के कारण संस्कृति का मुख्य मन्तव्य है-"हर व्यक्ति अपना नये जीवन, नई क्रान्ति, नई चेतना और नये प्रकाश विकास अपने परिश्रम द्वारा ही कर सकता है। किसी का संचार किया। दैविक या अद्दष्ट शक्ति के द्वारा नहीं।"
भारत के धार्मिक जगत् में विचार स्वातंत्र्य का " श्रमण संस्कृति का यह सिद्धान्त अन्ध श्रद्धा के प्रवेश हुश्रा जिससे पुरोहित वाद की नींव हिन गई । अन्धकार में भटकते विश्व के लिये अपूर्व प्रकाश सामाजिक क्षेत्र में भी अपूर्वा क्रान्ति हुई । जन्म जात पुंज सिद्ध हुआ।
वर्ण भेद की ऊंच नीचता की भावना दुर्बल होने भारतीय संस्कृति का उच्चतम स्वरूप यदि हमें लगी। गुण पूजा का महत्व बढ़ा। सद् गुणी शुद्र देखना है तो वह जैन संस्कृति में ही प्राप्त हो सकता दुगुणी बाम्हण से श्रेष्ठ है, स्त्री को भी पुरुष वर्ग है। यदि यह भी कह दिया जाय तो कोई अत्युक्ति के समान मात्मोन्नति के पूर्ण अधिकार हैं यह जैन न होगी कि भारतीय संस्कृति को महानता बढ़ाने धर्म ने ही घोषित किया।
और रक्षा करने में जन संस्कृति का असाधारण योग इस प्रकार सामाजिक क्रान्ति करने में भी जैन रहा है।
धर्म ने अकथनीय कार्य किया है। भारत के एक महान विद्वान सर पट मुखम् चेट्टी धार्मिक मतभेदों और दार्शनिक गुत्थियों को, ने एक भाषण में कहा है कि:
सुलझाने के लिये "अनेकान्त वाद" का प्ररूपण कर
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