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________________ जैन श्रमण परम्परा ५५ KADMINISANDHIRADDITI IRID OTIHIRIDIUM THDAIIIL MILITICADEMISTORICHETHDCIN 10 MINgi IIISour ऐसे अनेको महान् उपकार आचार्य श्री के हाथों आपके पश्चात् और भी पट्टघर हुए हैं पर हुए है। मरुधर वासियों की विनंति पर आपने अपना इस समय तक भगवान महावीर की परम्परा का अन्तिम चातुर्मास उपकेशपुर किया । दिव्यज्ञान द्वारा प्रावल्य बढ़ चला था अतः अब हम भगवान महा. अन्तिम समय जान लूणाद्रि पर्वत पर १८ दिन का वोर को परम्परा का वर्णण प्रारंभ करते हैं। अनशन कर स्वर्ग सिधारे। भगवान महावीर स्वामी की शिष्य-परम्परा प्रथम गणधर गौतम स्वामी-भगवान् महावीर तथा श्राविकाएं हुई। स्वामी द्वारा प्रदत्त दूसरी देशना के समय तत्कालीन साधुओं में इन्द्रभूति (गौतम स्वामी ) मुरू थे महान् याज्ञीक ग्यारह ब्राह्मण विद्वानों और उनके तथा साध्वियों में महासति चन्दनवाला मुख्यथी।। साथ ४४०० ब्राह्मण जो भगमन महावीर से वाद छमावस्था और केवल पर्याय मिलकर ४२ वर्ष विवाद कर उन्हें पराजित करने की भावना से आये को दीक्षा पर्याय में भगवान ने १ अड़ ग्राम में, थे-भगवान के कल्याण कारी उपदेशामृत को सुन १ वाणोज्य ग्राम में, ५ चम्पानगरी में ५ पृष्ठ चम्पा में कर-स्वयं पराजित हो; धर्म की यथार्थता समझ १४ राजगृही में, १ नालंदा पांडा में, ६ मिथिला में, सब के सब भगवान के शिष्य बन गये। ये ग्यारह २ भद्रिका नगरी में, १ आलंभिका नगरी, १ श्रावस्ती विद्वान जैनधर्म के भी महान विद्वान बने । महावीर नगरी में आदि ४१ चातुर्मास कर अन्तिम ४२ शासन के गण नायक बन ग्यारह गणधर के रूप में वें चातुर्मास के लिये पावापुरी पधारे। सर्ग जीव प्रसिद्ध हुए । उनके नाम इस प्रकार हैं:- हितकारी अमृत वाणी से दशादिगंत में प्रभु की (१) इन्द्रभूति (गौतम स्यामो) २ अग्नि भति (३) अमर कीर्ति फैल रही थी। वायुभति ( ४ ) व्यक्त स्वामी ( ५) सुधर्मा स्वामी श्रायुष्य कम का क्षय निकट जामकर प्रभु ने ( ६ ) मोडत पुत्र [ . ] मौर्यपुत्र [ = ] अपित कार्तिक वदी १४ को संथारा किया। अपने प्रिय [.] अचलभ्राता [ १० ] मतायें और | ११] शिष्य गौतम को समीपवर्ती प्राम में देव शर्मा को प्रभास । प्रतिबोध देने के लिये भेजा । चतुर्दशी और श्रमा__ भगवान को वाणी को सूत्र में गूथ कर द्वादशांग वस्या के दो दिन के १६ प्रहर तक सतत् प्रवचन को सुव्यवस्थित रखने का कार्य इन गणधरों ने फरमाते हुए आज से २४६१ वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्णा किया । अमावस्या को अर्थात् दीपमालिका की रात्रि में भगवान महाव र के ३० वर्ष पर्यन्त प्रदत धर्म भगवान महावीर स्व मी निर्वाण पद को प्राप्त हुए । देशना से भगवान के चतुर्विध श्री संघ में गौतम स्वामी जब वापस लौटे और भगवान के १४,००, साधु ३६,००० साध्यिां तथा लाखों श्रावक निर्वाण का समाचार जाना तो अत्यन्त शोकाकुल Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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