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________________ ५६ जैन श्राण संध का इतिहास INir-III IIMID dil UIDAIHARIDGll! UID OT NITD-DI.HINDI. HINDI IIDOID AUDIT DOINDA हुए । भगवान के प्रति उनका अत्यन्त ममता भरा का सर्जन किया कि जो भी प्राणी एक बार जैन स्नेह था और इसी 'मोह' पाश में प्रथित रहने से ही धर्मानुयायी बनजाय । उसके और उसके वंश परम्परा ने अबतक सुधर्मा स्वामी को छोड़ अन्य ६ गणधरों के खून में ही इस संस्कृति का प्रभाव जम जाय । यह के समान केवल ज्ञान के धारक भगवान नहीं बन सब श्री सुधर्मा स्वामी के शुभ प्रयत्नों का ही सुफल पारहे थे। परतु निर्मल हृदयी गौतम को तत्काल है। आपको ६२ वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान की सत्य ज्ञान हो पाया। वे बोल उठे अरे । प्रभु तो प्राप्ति हुई। आप १०० वर्ष की अवस्था तक धर्म वितगगी थे और मैं मोह में पड़ा हुआ था-धन्य है देशना द्वारा जगत् का उद्धार करते हुए निर्माण प्रभु को जिन्होंने मुझे इस मोह की असारता का प्राप्त हुए । भान कराकर वितरागता का मार्ग प्रशस्त किया। केवल ज्ञान प्राप्ति पर संध व्यवस्था का भार श्री गौतम स्वामी की यह विचार धारा क्षपक श्रेणी जम्बूस्वामी को सौंपा वर्तमान द्वादशाङ्गी के सूत्र रूप तक पहुंची और तत्क्षण घनघाति कर्म चकना चूर के प्रणेता भी श्री सुधर्मा स्वामो ही हैं।श्री द्वादशांगो हो गये और गौतम स्वामी ने भी भगवान महावीर के नाम इस प्रकार हैं:स्वामी की निर्वाण गमन की रात्री में ही केवल ज्ञान १ आचारांग सूत्र, २ सूत्र कृतांग, ३ स्थानांग, और केवल दर्शन प्राप्त कर लिया। ४ समवायांग, ५ व्याख्या प्रज्ञप्ति ६ ज्ञातृ धर्म कथांग केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् बारह वर्ष तक ७ उपासक दशांग ८ अन्तकृद् दशांग : अनुत्तरो आपने धर्म देशना फरमाई और भगवान महावीर पयानिक १० प्रश्न व्याकरण ११ विपाक सत्र और के शासन की संघव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। १२ दृष्टवाद। ___ इस प्रकार भगवान के ग्यारह गणधरों में से बारहवें दृष्टिवाद के अन्दर १४ पूर्वा भी समाविष्ट केवल ५ वें गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ही केवल ज्ञान हैं । चौहपूर्वो के नाम इस प्रकार हैं:से शेष रहे अतः आप ही भगवान महावीर स्वामी के १ उत्पाद पूर्वा, २ अमायनीय पूर्वा, ३ वीर्य प्रवाद प्रथम पट्टधर प्रसिद्ध हुए और वर्तमान साधु समुदाय पर्वा ४ अस्तिनास्ति प्रवाद ५ ज्ञान प्रसाद श्री सुधर्मा स्मामी का ही आज्ञानुवर्ती माना जाता है। ६ सत्य प्रवाद ७ आत्म प्रवाद कर्म प्रवाद । प्रत्याख्यान प्रवाद १० विद्या प्रवाद ११ कल्याणप्रवाद १ श्री सुधर्मास्वामो १२ प्राणप्रवाद १३ क्रया विशाल पूर्व १४ लोक आपने भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्ररूपित बिन्दुसार । चतुर्विध श्री संघ को आन्तरिक एवं बाह्य सर्व विध वैसे त. समर। जैनागमों का दृष्टिवाद में ही ऐसा सुदृढ़ बनाया की उसकी नींव अमर होगई और समावेश हो जाता है किन्तु अल्पमति मनुष्यों के लिये आजतक जैनधर्म का गौरव पूर्ववत बना हुआ है और अलग अलग ग्रन्थों की रचना की जाती है । जैनधर्म भविष्य में भी ऐसा ही बने रहने की आशा की जाती के प्राण भूत सकल श्रुतागमों का मूलाधार श्रीसुधर्मा है । आपने ऐसे आगम साहित्य और विचार परम्परा स्वामी गणधर प्रथित द्वादशांग ही है। अग बाह्य Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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