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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास 1 HIDARD TUM 101 manuup DILIP-AUR HITDADHIIIID CHITTIND GIn II II|| |SMITHI-TV1100110 AID TO dluWDOID AUTH HIDDENDINITIm ITIDIN :DIA जनता को महाजन जाति की संज्ञादी। सबको १ सूत्र सिन्ध प्रदेश के शिवनगर के राजा रुद्राक्ष के पत्र में, एक समाज में यांधा और इस संगठन का नाम कक्क कंवर से, उसके जंगल में शिकार खेलते समय दिया 'महाजन संघ'। आपकी भेंट हुई। आपने उसे जीव हिंसा के महा समय पश्चात ही महाजन संघ अत्यधिक पाप बताये । कनक कंवर बहुत प्रभावित हुआ और बिनास को प्राप्त हो गथा । श्राबादी की अधिकता हिंसा पथ से मुह मोड़ अहिंसा पालक बना । राजा के कारण और व्यापार के निमित्त लोग उपकेशपुर रुद्राक्ष भी जैनधर्मानुयायी बना और सिन्ध भूमि में नान प्रोसियाँ) को छोड कर भारत के अन्य कई जैन मंदिरों का निर्माण कराया। राज पत्र कक्क बसने लगे। ओसियां आने के कारण उन कयर प्राचार्य के पास दीक्षित हुआ । यही आगे जाकर नगरों में वे 'मोसवाल' नाम से प्रसिद्ध हुए। आठवें पट्टधर कक्कसरि हुए। उपक विवेचन से यह स्पष्ठ है कि प्राचार्य अनेकानेक भोजन व पानी आदि के कष्ट, श्री ने हमारी प्रोसवाल सवाल समाज पर कितना विरोधियों द्वारा हिंसक आघात प्रत्याघात को सहन महान् उपकार किया है। सूरीश्वरजी के जीवन का करते हुए भी आचार्य श्री ने सिन्ध भमि में जैनधर्म अधिक अंश प्रायः आचार पतित जातियों का का डंका बजाया। उद्धार करने में ही व्यतीत हुआ है। आपने अपने आचार्यकक्कसरि-(वि० सं० ३४२ वर्ष पूर्व ) सदुपदेशों द्वारा केवल मनुष्य समाज को ही मुग्ध पार्श्व प्रभु के अाठवें पट्टधर कक्कसूरि भी महान् नहीं कर लिया था वरन कितनी ही अधिष्ठात्री देवियों प्रभाविक आचार्य हुए हैं। आपने भी सिन्ध भमि एकां चक्र श्वरी देवियों ने आपके पास मिथ्यात्व का " में जैनधर्म प्रचार को ही छापना मुखा लक्ष्य बनाया त्याग करक सम्यक्त्व प्रहण किया था। था। आपको भी अनेक यातनाओं का सामना करना धन्य है ऐसे महान उपकारी आत्मा को जिन्होंने पड़ा। यज्ञों में तथा देव मन्दिरों में पशु बलि के ऐसे महान शुभ कार्योंद्वारा विश्व में अपना नाम साथ नर बलि का अभी पूर्ण रूपेण अन्त नहीं हो विख्यात ही नहीं किया अपितु अमर कर दिया है। पाया था। बलिदान के समर्थक जैन मुनियों के आपका समय वीर निर्वाण सवत् ७० है । कट्टर दुश्मन बने हुए थे। आचार्य यक्षदेव सूरि-(वि० ३८६ वर्ष पूर्व ) विहार काल में एक स्थान पर आपने जगदम्बा सातवें पट्टधर पा० यक्षदेव सरि महान् चमत्का- के मंदिर में एक बत्तीस लक्षण युक्त राजकुमार की रिक महापुरुष हुए हैं। अपने पर्वाचार्य श्री रत्नप्रभ बलि दी जाने का बनान्त सना-विश्व शान्ति के मरि द्वारा अंकुरित 'महाजन संघ' के पौधे को आपने नाम पर इस राजपुत्र की बलि हो रही थी। आचार्य विशेष रूप से परिप्लावित बनाया । आपकी प्रचार भूमि मरधर के बाद विशेष रूप से सिन्ध प्रान्त देव ने मंदिर में पहुँच कर सब को जगदम्बा के रहा। उधर अब तक जैन मुनियों का ध्यान कम था मातृ-स्वरूप को समझाया और इस हिंसकारी कुमार्ग अतः आपने उस क्षेत्र के उद्धारार्थ निश्चय किया। से सब को बचाया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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