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________________ जैन श्रमण - परम्परा Mix |D INAMSTIMADUINDoll Rose||hoseliND-Til:migralu !D OIR I NAT INCHAR !lous Hironment!INSTAMI: IDOLD को शुद्ध आहार प्राप्त नहीं हो सका इसलिए शिष्यों ने जल से प्राचार्या की का चरणांगुष्ट प्रक्षालन करके सूरिजी से इस देश से लौट चलने के लिये प्रार्थना वर जल राजपुत्र पर छिड़कने से कुमार शीघ्र ही की। श्रीमद् रत्नप्रभसूरीश्वरजी मे भी उनको प्रार्थना अंगड़ाई ले कर उठ बैठा । यइ कौतुक देख कर सारे स्वीकार करके अनुमति प्रदान करदी किन्तु वहां की नगर वासी स्तब्ध रह गये और प्राचार्य श्री के चरणों अधिष्ठात्री देवीने आपसे प्रार्थना की कि यह में पड़ कर विनय करने लगे कि हमें सन्मार्ग का चातर्मास तो आप यहां ही करें। इस पर ४६५ शिष्यों प्रदर्शन कराइये। ने तो वहां से कोरन्टपुर की ओर विहार कर दिया। राजा ने बड़ी अनुनय विनय की कि हे प्रमु बाकी ३५ साधुओं ने आचार्य श्री के साथ उपकेश आपकी कृपा से मेरा पुत्र जो कि इस नगर का भावी नगर में ही चातुस कर उस अनार्य देश को प्रार्य नाथ होता पुनर्जिवित हुआ है, अतः मैं खुशी से बनाने का निश्चय किया। श्राघा राज्य आपको भेंट करता हूँ । इस पर प्राचार्य ___ इस समय यहां के राजा उपल देव ने सुपुत्री को श्री ने फरमाया हे राजन् ! हम जैन साधु है-कंचन विवाह योग्य हो जाने पर मन्त्री उहड़देव के सुपुत्र कामिनी के त्यागी है, हमें राज्य नहीं चाहिये। हम त्रिलोक्यसिंह के साथ विवाह कर दिया। दोनों तो यह चाहते हैं कि तुम्हारे राज्य में जो अनार्यता दाम्पत्य जीवन सानन्द व्यतीत करने लगे। एक फैली हुई है वह मिट जाय, हिंसा न हो, साधजनों दिन रात्रि में एक विपले सर्प ने राजकुमार को इस का सम्मान हो-सब लोग सातों व्यसनों को त्याग लिया। जिससे राजकुमार मत्यु को प्राप्त हुए। कर 'महाजन' बने, उत्तम पुरुष बने। जैन का अर्थ अनेकानेक उपचार किये गये गये परन्तु कोई सफा है उत्तम आमरण वान । इस प्रकार के कथन से लता प्राप्त नहीं हुई सारे शहर में शाक छा गया। प्रभावित हो कर समस्त नगर निवासी जनता ने समस्त जैन समुदाय राजकुमार को विमान में प्रारूढ़ जैन धर्म ग्रहण किया। प्राचार्य श्री ने सबको मास कराकर श्मशान भूमि की ओर प्रयाण कर रहे थे। मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थ का पाग करवाया एवं समस्त प्रजाजन करुण स्वर से रुदन कर रहे थे। सम्यग दर्शन ज्ञान चरित्राणि मोक्ष मार्ग' का उपदेश जिससे ऐसा प्रतीत होता था मानों सत्र दुख की फरमाया। घटा छा रही हों। इस प्रकार उपस्थित जन समूह पर सूरिजी के __ इस समय किसी ने एक लघु साधु का रूप बना- उपदेश का काफी प्रभाव पड़ा । राजा एवं मन्त्री ने कर उन लोगों से कहा कि भाइया ! राजकुमार तो आचार्य देव से प्रार्थना की हे भगवान, आपने हम जीवित है, इन्हें मत जलाओं। इन्हें प्राचार्य श्री अनाथ को सनाथ बना दिया है, हम अन्तरात्मा रत्नप्रभ परीजी के पास ले जाओ वे इसे जीवित कर की साक्षी से प्रण करते हैं कि बाज से हम आपके देंगे। इतना कह कर वे साधु वहां से अन्तरध्यान हो अनुयायी एक सच्चे उपासक बन गये हैं। इस समय गये। सब लोग आचार्य जी के पास आये। प्रासुक को अनकल समझ कर आचार्य श्री ने उपस्थित Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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