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________________ जैन श्रमण-परम्परा Im Raam TRAINISTIO-Oli moti INSTIN HIS NAMSADHIYARISTORI HIND COIL Isririkhis RIP ISHITAUDouTIMILSINHASITD आचार्य श्री के इन महान् कदम का बड़ा मुन्दर 'सुध' सुपास वसति में ठहरे। सुपास से अर्थ है परिणाम निकला । 'यज्ञ की हिंमा' निर्बल होने लगी। पाप्रभु का मंदि। सर्वात जैनधर्म चमक उठा। निम्न राजाओं ने जैनधर्म २ बौद्ध ग्रन्थ ललित विस्तरा के कई उल्लेखों से स्वीकार कियाः भी यह स्पस्ट सिद्ध होता है कि गौतम बुद्ध के पिता १ौशाली के राजा चेटक २ राजगही के राजा राजा शुद्धोदन जन श्रमणोपासक थे। प्रसेनजीत ३ चम्पानगरी के राजा दधिवाहन ४ क्षत्रिय । निजलि ३ डॉ० स्टीनेन्सन ने भी एक जगह लिखा है कद के राजा सिद्धार्थ ५ कपिलवस्त के राजा शदोदन [क राजा शुद्धादन का घराना जन था। ६ पोलासपुर के राजा विजय सेन साकेनपुर के ४ इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया वोल्यूम २ के पृष्ठ ५४ पर लिखा है कि-कोई इतिहास कार राजा चन्द्रपाल ८ सावत्थी के राजा ऊदीनशत्र ६ कांचनपुर के राजा धर्मशील १० कपिलपुर नगर तो यह भी मानते हैं कि "गौतम बुद्ध को महावीर का राजा जयकेतु ११ कोशाम्बी का राजा संतानी र स्वामी से ही ज्ञान प्राप्त हुआ था।" कुछ भी हा यह तो मानना ही पड़ेगा कि उस १२ श्लोताम्बि का राजा प्रदेशी तथा १३ सुप्रीव एक १४ काशी कोशल के राजाओं ने भी जैनधर्म स्वीकार . समय जैन धर्म के आत्मोक्तर्षकारी सिद्धान्तों ने महात्मा बुद्ध का मार्ग दर्शन अवश्यक किया है। किया था। ५ सरभंडारकर ने भी महात्मा बुद्ध का जैन मुनि महात्मा बुद्ध प्रभावित-आचाय केशो, श्रमण के होना स्वीकार किया है। इस प्रकार केशी श्रमण पेहित नामक एक शिष्य एक समय कपिल वस्तु और उनके शिष्य समुदाय के हाथों भारत में सद् धर्म पधरे। यहाँ के राजा शुद्धोदन ने आपका बड़ा स्वागत का प्रचार प्रबल रूप से हुआ। किया और धर्मोपदश सुवा। धर्मोपदेश श्रवण के केशी गौतम संवाद समय आपक पुत्र बुद्धकिता (गीतमबुद्ध) भा साथ भगवान पाश्वनाथ के चतुर्थ पट्टधर केशी श्रमण थे। राजकुमार बुद्ध बड़े प्रभावित हुए। उनके हृदय में और भगवान महावीर स्वामी के प्रथम गणधर गौतम नैराग्य के बीजांकुर अंकुरित होगये । माता पिता के स्वामी की श्रावस्ती नगरी में प्रथम बार भेंट हुई थी। कठोर नियंत्रण के बाद भी समय पाकर ना घर से उस समय दोनों में चतुर्याम और पंचयाम धर्म भाग निकले और थाचार्य केशी श्रमण के साधुओं सचेल । अचेल आदि अनेक पारस्परिक भिन्नताओं के पास 'जन दीक्षा' स्वीकार की। निम्न प्रमाणों से पर विचार विमर्प हुआ जिनका जैनागमों में विवेचन इसकी सत्यता की जासकती है: किया गया है । और जिसका बड़ा महत्व है। १ बौद्ध धर्म के 'महावग्ग' नामक ग्रन्थ में बुद्ध आचार्य स्वयंप्रभ मूरि [वि० ४७० वर्ष पूर्व के भ्रमण समय का उल्लेख करते हुए एक स्थान पर आप पाश्व पट्ट पाम्परा के पांचवे महा प्रतापी लिखा है कि एक समय बुद्व राजगृह' गये और वहाँ पट्टधर हुए हैं । आपने अबुदाचल की अधिष्ठात्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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