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________________ जैन श्रमण सौरभ ११३ त्याग-वैराग्य के प्रभाव से करीबन १००-१५० की ५ जयपुर में सं० १९८४ का शु० ५ झान पंचमी संख्या में सुयोग्य साध्वी समुदाय बढ़ा। हर एक को धूपियों की धर्मशाला में "श्राविका श्रम" की चौमासे में आपके हाथ से व उपदेश से दो धार स्थापना की जो अब “वीर बालिका विद्यालय" के दोक्षायें होती ही थी। सपको आपने-विद्या पढ़कर रूप में सुसंचालित है । ४०० बालिकाएं पढ़ रही हैं। योग्य बनाया । ___वृद्वावस्था एवं अशक्त होते हुए भी आप आगरे सं० १९७६ फाल्गुन सुदी १० को प्रातः आपकी वाले सेठ लूणकरणजी वीरचदजी नाहटा की माताजी गुरुवर्या श्री पुण्य श्रीजी म. सा. का कोटा में स्वर्गके प्रति आग्रह पर बीकानेर पधारी और वहाँ बीस वास हुआ। आप उस समय वहीं थी और अन्तिम स्थानकजी का उद्यापन तप महोत्सव बड़े समारोह सेवा में गुरु सेवा का लाभ लिया । गुरुवर्या के स्वर्ग- पूर्वक कराया । वास के बाद श्राप पर हो समुदाय संचालन का भार बीकानेर के उदरामसर देशनोक श्रादि क्षेत्रों पाया जिसे आपने प्रवर्तिनी रूप में निभा कर सब के में श्वेताम्बर मुनिराजों का कम पदापण होता था। स्नेह एवं श्रद्धा भाजन बने । आपने इस ओर खूब धर्मोद्योत किया। कोटा चातुर्मास के बाद स्वर्गीय गुरुवर्या के अन्तिमावस्था जान आपने बीकानेर में वर्तमान आदेशानुसार आपने दिल्ली और उत्तर प्रदेश की प्राचार्य वीरपुत्र श्री आनन्दसागर सूरीश्वरजी म० के ओर विचरण किया । इम प्रदेश में आपश्री के उपदेश शुभ हस्त से श्री ज्ञानश्रीजी म० को प्रवर्तिनी पद से म्यान २ पर अनेक महत्व पूर्ण कार्य हुए हैं जिनका विभूषित कर संघ संचालन सौंपा। विस्तृत वर्णन यदि किया जाय तो एक स्वतंत्र पुस्तिका फलौदी से जैसलमेर निवासी सेठ जुगराजजी ही बन जाय अतः संक्षेप में ही लिखना पर्याप्त होगा। गुलाबचन्दजी गोलेला ने आपकी अध्यक्षता में जैसल १ हापुड़ में सेठ श्री मोतीलालजी बूरड़ द्वारा नव मेर तीर्थ की यात्रार्थ भारी संघ निकाला। मन्दिर निर्माण हुआ। इसी प्रकार आप श्री द्वारा जीवन के अंतिम क्षण __२ आगरा में दानवीर सेठ लक्ष्मीचन्दजी वैद्य तक लोकोपकागर्थ तथा धर्मोद्योत हेतु कई महत्व द्वारा बेलनगंज में भव्य मन्दिरजी तथा विशाल धर्मः पूर्ण कार्य होते रहे थे। शाला बनवाई गई। ऐसी महान उपकारी महान् पूज्यनीया साध्वी ३ आगरा के निकट श्री शैरीपुर तीर्थ का उद्धार शिरोमणी गुरुवर्या श्री सुवर्णा श्री जो की वह दिव्य कार्य कर वहाँ की सुन्दर व्यवस्था कराई । गुरुवर्या का ज्योति सं० १६६१ माघ कृष्णा को सायंकाल ५ यह कार्य चिर स्मरणीय रहेगा। बजे इस लोक से सदा के लिये अन्तर्धान होगई। ४ दिल्ली पातुर्मास में महिला समाज की उन्नति सर्वत्र शोक की काली घटाएं छागई । जयपुर हेतु "साप्ताहिक स्त्री सभा" का प्रारम्भ किया और दिल्लो आदि बडी दूर दूर से हजारों मानव मेदिनी "वोर बालिका विद्यालय" की स्थापना कराई। एकत्र थीं। दूसरे दिन प्रातःकाल बीकानेर के गोगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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