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________________ २१२ जैन श्रमण संघ का इतिहास mpgNDIMUDAIIMJODIDIDATTIPATIOHINIDDIIIUMpdIII-IIIRITULAMITUTIOTIHARIDAIINDOIHIDDLATHHHIDADIWARDOIRI छोड़कर गुरुणीजी से दीक्षा ले ली। उसी दिन से बडी तपस्या की थी, दूसरा चौमासा फलोधी मारवाड़ भगवान महावीर स्वामी के बतलाये हुए सत्यमार्ग को में हुआ, वहाँ आपको श्रीमन् ऋद्धि सागरनी महाराज - ग्रहण कर वे आत्म-कल्याण का साधन करने लगीं। साहब का संयोग हुआ, उनके पास व्याकरण का दीक्षा लेने पर आपका नाम "सुवर्णश्री" हो गया और अभ्यास, सूत्र वाचनादि, आवश्यक ज्ञान हासिल तव से आप इसी शुभ नाम से प्रसिद्ध हैं। किया । भगवती सूत्र भी सुना । २१ उपवास की बड़ी दीक्षोपरान्त वे सदा-सर्वदा ज्ञान-ध्यान में ही तपस्या की। अपना समय बिताने लगीं । ज्ञान बढ़ने के साथ ही तीसरा चौमासा नागोर में हुआ, दिन प्रतिदिन साथ आपकी ध्यान शक्ति भी क्रमशः इतनी बढ़ गई, आपका अभ्यास बढ़ता गया। शासन सेवा करने की कि उस समय दिन-रात के २४ घन्टों में से १३-१४ योग्यता तथा गुरुभक्ति में आपसर्व प्रधान थीं। इससाल घन्टे आपके ध्यानावस्था में ही व्यतीत होते थे । आप भी आपने १६ उपवासकी बडी तपस्या की थी। चौथा में आत्मिक ध्यान करने की अपूर्व शक्ति विद्यमान थी। चौमासा नया शहर ( व्यावर ) में किया। पांचवां जबसे आपने दीक्षा ली है, तबसे आज तक अनेक चौमासा फलौदी मारवाड़ में, छट्ठा चौमामा शत्रुजय प्रकार की तपस्यार कर चुकी थी और यथा शक्ति तीर्थ पर हुआ । वहां आपने सिद्धितप किया, १५ उपभी करती ही जाती । जहाँ तक हमें ज्ञात हुआ है, वास, १० उपवास : उपवास किये । तीन अट्ठाई की। आप अट्ठाई, नवपदजी की अोली और वीसस्थानक छोटी तपस्या की तो गिनती करना ही कठिन है। तप करने के साथ-साथ कठिन सिद्धि-तप का भी सम्पूर्ण पर्व तप जप से आराधन किये, किसी पर्व को अाराधन कर चुकी थी । उपवासों में तो कोई गिनती नहीं छोड़ा। ही नहीं है । आप एक ही समय में लगातार नौ, दस, चौमासे तो आपने पुण्य श्री जी महाराज सा० ग्यारह, सत्रह, उन्नीस और इक्कीस उपास तक कर के संग किये । दसवाँ चौमासा उनके हुक्म से बीकाचुकी थी। नेर किया। __श्री १००८ श्री पुण्य श्री जी महाराज की शिष्य- आपका बावीसवाँ चौमासा आपनी अहमदनगर मण्डली में, जिसमें प्रायः सवा सौ साध्वियां विद्यमान जन्म भमि में हुआ । खरतर गच्छीय साध्वीजी म० थी, इस समय आप ही सब में प्रधान हैं। का इस शहर में यह सर्व प्रथम आगमन था वहाँ से श्रापका प्रथम चौमासा बीकानेर में हुआ, “हां पूना शहर में पधारे, वहाँ से बम्बई शहर में २४ वां साधु विधि, प्रकरण, जीव विचार, नवतत्व और कर्म चौमासा किया। येसब एक २ से बढ़कर उन्नति शाली ग्रन्थादि सब कंठस्थ किये। आप पढ़ते थोड़ा मगर चौमासे हुए । उनमें भी आपके तमाम चतुर्मासों में मनन इतना करते थे, जैसे छाछ से माखन निकालना बम्बई का चातुर्मास वडा भारी प्रभाव शाली हुआ। आपकी बुद्धि बडी तीक्ष्ण थी, स्मरण शक्ति आपमें जब आपकी दीक्षा हुई थी, तब कुल १५ या बीस बहुत थी । प्रथम चौमासे ही में श्राप १७ उपवास की साध्वी जी ही थीं । फिर बाद में आपके उपदेश एवं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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