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________________ जैन श्रमण-सौरभ 200S HISAI AIROINISTRATIME ISKOHR MISCOIL INon-mi migo AMBOIL HINDI RISIN HISom amoxim sxam alexand बार पर्वनी कथा, सुरुढ़ चरित्र, जिनदत्त सूरिजी, के जैन मन्दिरों में अजनशलाका व प्रतिष्ठा महोत्सर्व मणिधारी जिन चन्द्रस रिजी, जिन कुशल सरिजी, कराये हैं। अकबर प्रति बोधक जिन चन्द्रसूरिजी के हिन्दी ग्रन्थ आपके विशेष सहयोग रूप पूज्य बुद्धिमुनिजी भी का संस्कृत में श्लोकबद्ध अनुवाद । जिनयशसूरि तथा समाज में बड़े आदरणीय मुनिवर बने हुए हैं । जैन जिन रिद्धीसरिजी म० के श्लोक बद्ध जीवन चरित्र। शासन की गौरव वृद्धि की ओर विशेष लक्ष्य रखते हैं। आदि कई प्राथों को संस्कृत में श्लोक बद्ध रचनाएं इस समुदाय में साध्वी जी श्री भाव श्री जी की कर साहित्य जगत में अपूर्व श्रद्धा प्राप्त की है। शिष्या आनन्द श्री जी को शिष्या सद् गुण श्री जी, अदभुत साहित्य सेवी हाने के साथ २ आप श्री के रूप श्री जी, लाभ श्री जी तथा राज श्री, रत्न श्री जी शुभ हस्त से पनासली (मालवा) तथा कच्छ मांडी तथा विनय श्री जी आदि हैं। श्री चिदानन्दमुनिजी तथा श्री मगन्द्र मुनिजी [ संसारी पिता-पुत्र] श्री चिदानन्द मुनि जी का संसारी नाम चिमनलालजी तथा मृगेन्द्र मुनि का सं० नाम महेन्द्र कुमार है। जन्म-क्रमशः सं० १६६६. वैश्याव वदी १० गांव सरत, सं० १६६३ पौष सुदी १५ गांव सगरासपुरा (गुजरात)। चिदानन्द मनिनो के पिता का नाम शा० हीराचन्द आशा जी तथा मृगेन्द्रमुनि के पिता का नाम शा० चिमनलाल होसचन्दजी था। माता का नाम क्रमशः दिवाली बेन तथा गजरा बेन । जाति बीसा ओसवाल । पिता पुत्र तथ गजरा बेन ( पत्नी श्री चिमनलालजी) तीनों ने सं० २००३ अच्छा कार्य कर रही है। इसी तरह सिरपुर, नेर, वैशाख वदी ११ को गांव पांचे टया (राजस्थान) में गौतमपुरा, देपालपुर, भोपाल श्रादि कई स्थानों की पूज्य पन्यास श्री निपुण मुनि के वरद हस्त से दीक्षित समाजों में एक नवीन जागृति आकर धामिक शिक्षण की व्यवस्थाए हुई है। आप एक उच्चकोटि के विद्वान श्री चिदानन्द मुनिजी का ध्यान समाजोन्नति की लेखक भी हैं। ओर विशेष रहता है। समाज संगठन और शिक्षा वर्ष को अल्पायु में ही दीक्षित बाल मुनि मृगेन्द्र प्रचार के लिये सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। आप ही जी भा व्याकरण, न्याय जैनागम वषयक ग्रन्थों के के उपदेश से धूलिया में पाठशाला स्थापित हुई और अध्य यन द्वारा ज्ञानोपार्जन में सतत् लीन रहते हैं।
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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