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________________ १६४ जैन श्रमण संघ का इतिहास WALEDDINATEDKARISMA RIDEO.moeonND COMRAND STANDAR: DIDISonITANIND DISROIN INDIndition 2001 INDORE आगमोद्धारक आचार्य श्रीमद् मनि श्री प्रबोधसागरजी महाराज विजय सागरनन्द सूरिश्वरजी म० का मुनि समुदाय आगमोद्वारक आचार्य श्री सागरानन्दसरिजी का जीवन परिचय 'महाप्रभाविक जैनाचार्य' विभाग में पृष्ठ ८८ पर दिया गया है। आपके २५ शिष्य थे। आपके वर्तमान मुनि समुदाय की सूची पृष्ठ ११६ पर देखिये। श्राचार्य हेमसागर सूरीश्वरजी महाराज जन्म सं० १६६३ ज्येष्ठ शुक्ला ६ कपड़ वंज ! संसारी नाम पोपटलाल । पिता लल्लुभाई । माता का नाम प्रधानबाई । जाति-बीसा नीमा जेन । पन्यास जी श्री विजयसागरजी गणि के पास सं० १९८७ में आषाढ़ शुक्ला ६ को दीक्षा अंगीकार की। सारा परिवार संयम मार्ग पर , आप श्री का सारापरिवार संयम मागे पा प्रवर्तित है। प्रारम्भ में आपकी माता ने यह मार्ग अपनाया । बाद में मुनि प्रबोध सागरजी नुनि बने । आपके बाद आप आगमोद्धारक आचार्य श्रीमद् विजय आनंद आपकी स्त्री और लड़की दोनों ने संयम मार्ग ग्रहण सागर सरीश्वरजी के प्रधान शिष्यों में से वर्तमान किया। थोड़े ही वर्षों बाद आपके छोटे भाई ने अपनी में एक प्रसिद्धी प्राप्त जैनाचार्य हैं। पत्नी और एक कन्या के साथ संयम मार्ग स्वीकारा । आप श्री के शुभ हस्त से कई स्थानों पर प्रतिष्ठाएं आपके संसारी बड़े भ्राता जिनका वर्तमान में नाम उपधानतप उजमण, उघापन आदि अनेक धर्म कार्य बुद्धिसागरजी है इन्होंने, इनकी पत्नी ने और इनकी होते रहते हैं। -दी कन्याओं ने दीक्षा अगीकार की। साहित्य सजन और शिक्षा प्रचार की ओर भी मात पक्ष में भी कई बहिनों आदि ने भी दिक्षाएं आपका विशेष लक्ष्य है।
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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