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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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स्व. श्रीमद जिन रत्नसरिजी महाराज जिन रिद्धं सूरिजी महाराज दीक्षा गुरु श्र राजमुनि
जी। पूज्य मोहनलालजी म. की खरतरगच्छीय परम्परा के वर्तमान में आप ही शिरोमणि मुनि हैं।
जन्म सं० १९३८ लायजा ( कच्छ) । दीक्षा सं० १६५८ रेवदर( आबू)। गणिपद सं०१६६६ लश्कर (ग्वालियर)। आचार्य पद सं. १६६६ पायधुनी बम्बई ।
उपाध्याय श्री लब्धि मुनिजी स्वर्गवास सं० २०११ मांडवी (कच्छ)।
एक महान त्यागी, तपस्वी शान्त मूर्ति एवं समन्वय आप महान् अध्यवसायी । तपस्वी एवं निरन्तर
वादी विद्वान के रूप में आज आप समस्त जैन समाज साहित्य सृजन में लीन महा पुरुष थे । आपने अनेक
के श्रद्धा भाजन बने हुए हैं। प्राचीन ग्रन्थों का अवलोकन कर उनके भावार्थ को ग्रन्थित किया है । आप महान् साहित्यकार थे।
आप संस्कृत व प्राकृत भाषा के महान विद्वान
होने के साथ साथ महान् साहित्यकार विद्वान हैं। उपाध्याय श्री लब्धि मुनिजी
आप द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं:-कल्प जन्म सं० १६३६ मोटी खाखर ( कच्छ )। पिता सूत्र की टीका, खरतरगच्छ नी मोटी पट्टावली, नत्र का नाम-दनाभाई खीमराज । माता का नाम-नाथी पदजी नी थोही तथा दादासाहब नु स्तोत्र, श्री श्रीपाल बाई । संसारी नाम-लधा भाई। जाति-प्रोसवाल चरित्र श्लोक बद्ध, रत्न मुनि नु चरित्र संस्कृत में, जैन देढ़ीया। दीक्षा-सं० १६५८ रेवदर (सिरोही), आत्म भावना, चोवीस प्रभुजी ना चैत्य वदंन आदि उपाध्याय पद सं० १६६६ पायधुनी बम्बई । गुरु श्री कई स्तुति ग्रन्थ श्लोक बद्ध बनाये हैं।