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जैन श्रमण संघ का इतिहास
मुनि श्री विशालविजयजी
मुनि श्री निरंजनविजयजी
संसारी नाम-विनयचन्द्र' । जन्म-माघ पूर्णिमा सं० १९८६ । जन्म स्थान-इन्दौर (मालवा)। पिता का नाम शाह शिवलाल नागरदास जौहरी। माता का संसारीनाम-नवलमलजी। जन्म सं० १६७४ । नाम कांता बहेन । जाति तथा गौत्र-जैन वणिक दसा (जन्म स्थान, पिता माता आदि मुनि खान्ति विजयजी श्रीमाली । दीक्षा तिथि व स्थान-चैत्र शु०७ सं. २००६ के समान)। दीक्षा-सं० व स्थान-१०६१ कदम्बगिरि । बम्बई। गुरुनाम-नेमिसरिजी के शिष्य आ० श्री बडी दीक्षा-१६६१ जेठ सुदी १२ । अमृत सूरीश्वरजी महाराज। अल्प समय में अच्छी आप एक सुप्रख्यात विद्वान लेखक एवं साहित्य प्रगति की है। आप एक अच्छे लेखक, कवि एवं कार हैं। साहित्य सृजन की दिशा में विशेष लक्ष्य प्रखर वक्ता हैं। वर्द्धमान देशना, चारु चरित्र, है। आप द्वारा लिखित १२०० पृष्ठों का "संवत् कुलदीपकवंक,चूल चरित्र आदि पुस्तकों के लेखक हैं। प्रवर्तक महाराजा विक्रमा दित्य" अनुपम कृति है।
आपकी दीक्षा के ६ महिने बाद आपके लघुभ्राता छोटे मोटे ४० के करीब और भी कई प्रकाशन हैं। किशोरचन्द्र, २|| सालबाद दूसरे लघु भ्राता रमेशचंद्र आपकी शुभ प्रेरणा से "कथा भारती” नामक को दीक्षा हुई और उनके करुणा विजयजी, और द्विमासिक सं० १०१२ से लगातार निकल रहा है। राजशेखर विजयजी क्रमशः नाम दिये गये और आप इस पत्र में सचित्र सभी रसों के पोषक, विविध सुन्दर (विशाल विजयजी) के शिष्य घोषित हुए। शैली के चरित्र आते हैं।