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________________ HOCHOTE जैन श्रमण-सौरभ 54 1 19 10 पन्यासजी श्री मेरु विजयजी गणि आ. श्री विजयोदय सूरीश्वरजी म० के शिष्य रत्न प्रसिद्ध वक्ता पन्यासप्रवर श्रीमेरु विजयजी गणि वर्य का जन्म इडर के समीपवर्ती 'दीसोत्तर' गांव में वि० संवत् १६६२ में हुआ। पिता का नाम मोतीराम उपाध्याय और माता का नाम सूरजबाई था ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने पर भी पूर्व पुण्योदय से जैन धर्म प्राप्त हुआ । सं० १६८५ में वतरां गांव में आचार्य श्री विजयामृतसूरीश्वरजी के करकमलों से दीक्षा ली ! सं० २००६ में सुरेन्द्रनगर में आपको श्री भगवती जी का योगोद्वहन पूर्वक आपके गुरुदेव श्री विजयोदय सूरिजी म० ने गणिपद और सं० २००७ में राजनगर में आपको पन्यासपद प्रदान किया । आप जैनागम, व्याकरण, साहित्य के महान् विद्वान होने के साथ साथ प्रखर व्याख्याता एवं शासन प्रभावक मुनि हैं । अनेक गांव नगरों में विचरते हुए आपने कई भव्यों को सदुपदेश से धर्मवासित बनाये । आपने तीन उपधान वहन कराये। कितने ही संघ निकाले और कई जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठा की । अभी आप बम्बई आदीश्वरजी की धर्मशाला में विराजते हुए जैन समाज के अनेकानेक कार्य कर रहे हैं। पं० श्री देव विजयजी गणि आचार्य श्री विजयामृत सूरीश्वरजी के शिष्य रत्न श्री देवविजयजी गणिवर्य ने सं० १६८७ में 'नांडलाई' (मारवाड़) में पन्यासजी श्री सुमित्र विजय जी म० के पास प्रव्रज्या स्वीकार की। आप श्री ने भी श्री विजय नेमिसरिजी म० की छात्रछाया में व्याकरण प्रकरण सिद्धान्तादि शास्त्र का सम्यक अध्ययन वै० सुदी ३ को पन्यासपद प्रदान किया गया। आप किया । सं. २००७ का. वदी ६ में गणिपद और २००७ श्री अभी अपने मधुर वचनों से अनेक भव्यों को उपदेश दे रहे हैं। आप श्री का जन्म मेवाड़ के सलुम्बर गांव में वि० सं० १६६७ में हुआ । पिता का नाम कस्तूरचन्दजी और माता का नाम कुन्दनबाई था । मुनि श्री खान्तिविजयजी ५. मुनिराज श्री शान्ति विनय મહારાજ १४६ नन्म- मासी (मारवाड) संसारी नाम-खोमचन्दजी । जन्म सं० १६६४ जन्म स्थान बाली ( मारवाड़) । पिता-हजारीमलजी अमीचन्दजी । माता-सारीबाई । जाति-बीसा श्रोसवाल | गौत्र - हटुडिया राठौड । दीक्षा स्थान- १६८८ राजस्थान ] । गुरु का नाम-आचार्य विजय अमृतसूरिजी महाराज। आपने अपने लघुबंधु को उपदेश देकर दीक्षित किया जिनका नाम मुनि श्री निरंजन विजयजी है। जावाल www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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