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________________ पू० पं० श्री जीतविजयजी गणी " सुमित्रविजयज," मोतीविजयजी," शासन सम्राट, सूरिचक्रवर्ती, अनेकतीर्थोद्धारक जैनाचार्य श्रीमद् विजय नेमीसूरिश्वरजी महाराज का मुनि समुदाय REFR (३) आ० श्री विजयनन्दन सूरीश्वरजी म० (५) आ० श्री विजय अमृतसूरीश्वरजी म० (८) आ० श्री विजयकिस्तुर सूरीश्वरजी म० पू० आ० श्री के समुदाय में १३५, करीब साधु हैं । जो न्याय-व्याकरण - साहित्य-दर्शन - ज्योतिषशास्त्रों में लब्धप्रतिष्टत हैं । उनमें से मुख्य रूप से: " " " در " " " در " " " " जैन श्रमण- - सौरभ रामविजयजी मेरुविजयजी यशोभद्रयजयजी गणी در !! 39 स्वर्गीय जैनाचार्य श्रीमद् विजय नेमी सूरीश्वर म० सा० अपने समय में एक महान् प्रभावशाली, सर्व प्रिय एवं महान् शासन प्रभावक जैनाचार्य हुए हैं। और यही कारण है कि जैन संघ आज भी आप श्री के नाम के साथ शासन सम्राट, सूरि चक्रवर्ती, तीर्थोद्धारक आदि सम्मान पूर्ण शब्द जोड़ कर अभिनंदन प्रकट करता है । इन सम्बोधनों से ही आचार्य श्री के महान् व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है। आप श्री का संक्षिप्त जीवन चरित्र "महा प्रभाविक जैनाचार्य" विभाग में ८२ पृष्ठ पर दिया गया है । आप श्री की परम्परा का मुनि समुदाय काफी बड़ा है । वर्तमान में समुदाय में निम्न आचार्य विद्यामान हैं:( १ ) आचार्य श्री मद् विजय दर्शन सूरीश्वरजी म० (२) आ० श्री विजय उदयसूरिश्वरजी म (४) आ० श्री विजयविज्ञान सूरीश्वर मं० (७) आ० श्री विजय लाक्यय सूरीश्वरजी म० पू० पं० श्री दक्षविजयजी गणी देवविजयजी " " " " " " در ار " " सुशीलविजयजी गणी १४७ बोक जयनन्द विजयजी 29 ११ पुण्यविजयजी ار ور 33 धुरन्धरविजयजी गणी, प्रियंकरविजयजी गणी, चन्द्रोदयविजयजी गणी, आदि गणी वर्य विद्यमान हैं । तथा मुनि श्री हेमचन्द विजयजी, पं० शुभंकर विजयजी, पं० परमप्रभविजयजी, पं० महिमा प्रभ विजयजी, पं० चन्दन विजयजी, सूर्योदय विजयजी, खांति विजयजी, निरंजन विजयजी आदि हैं। yanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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